भगवान राम गंगा पार उतरना चाहते हैं पर केवट नाव नहीं ला रहा है, कहता है कि हे नाथ जब तक चरण नहीं धुलाईयेगा तब तक मैं नाव पर नहीं चढाऊँगा । सुना है कि आपके चरण धूली से पत्थर स्त्री बन जाती है । यह भी कहीं स्त्री बन कर आकाश में उड़ गई तो मैं तो लुट जाऊँगा । लक्ष्मण हमे भले तीर मार दें पर हे नाथ मुझे आपकी और महाराज दशरथ की सपथ है, जब तक चरण नहीं धुलाईयेगा तब तक नाव पर नहीं चढाऊँगा । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–.
नाथ पार हम उतरबो जी चरनियाँ धोइ के । छुअत चरनियाँ शिला नारि बनि जाला, कठवा के नैया मोर त हलके कहाला, उड़ जाई आकाश मोर कैसे होइ कमैया जी, चरनियाँ धोइ के । नाथ पार हम उतरबो जी……………. चाहे लखन मोहे अँखिया देखैहैं, चाहे लखन मो पै तीर चलैहैं, दशरथ शपथ मोहे राम के दुहैया जी, चरनियाँ धोइ के । नाथ पार हम उतरबो जी……………. केवँट के प्रेम प्रभु जी पहिचननी, प्रेम से प्रभु जी चरनियाँ धुलवनी, पार उतार जल्दी ले आव नैया जी, चरनियाँ धोइ के । नाथ पार हम उतरबो जी…………….