राधा जी सखियों से कहती हैं कि हे सखी कान्हा छुप कर के आया और मेरी चुनरी रंग गया। जब मैं पनिघट पर जल भरने गई थी तो मेरी गगरी फोड़ दिया पर हे सखी उसकी बंशी बहुत प्रिय लगती है। बंशी बजा कर उसने मेरे दिल को भी चुरा लिया है। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—-
श्याम रंगि गयो सजनी मोर धानि चुनरी ।
रंग भरी पिचकारी लेकर ,
छुप के वो आया हमार नगरी ।
श्याम रंगि गयो सजनी मोर……..
पनिघट पै सजनी कियो री बरजोरी ,
फोड़ दियो सजनी हमार गगरी ।
श्याम रंगि गयो सजनी मोर……..
कदम कि छैंया तले बंशिया बजाइके ,
लेइ गयो सजनी हमार जिया री ।
श्याम रंगि गयो सजनी मोर………