प्रभु श्रीराम वन में चले गए हैं। माता कौशल्या विरह में व्याकुल होकर विलख रहीं हैं। प्रस्तुत है माता कौशल्या की विरह वेदना पर मेरी ये रचना :——-
विरह में बिलखत कौशल्या माई ।
कोइ मोरे लाल दिखाई ।
विरह में बिलखत………….
जबसे भए राम बनवासी , 
सुधि न लाल की पाई ।
रात न आवै नींद नयन में, 
दिन का चैन गँवाई । 
विरह में बिलखत………….
बिनु पनही के बन बन भटकत ,
चरनन छाला परि जाई ।
कठिन भूमि कोमल पदगामी, 
कंटक कुश चुभ जाई । 
विरह में बिलखत………….
सहत बिपिन हिम आतप बाता ,
यह सब दुख न सहाई ।
हिंसक पशु निशिचर बन घूमहिं, 
पर्वत जल लग जाई । 
विरह में बिलखत………….
गए बिपिन मैं देखत रहि गइ, 
नैनन नीर बहाई । 
मैं तो जननी निष्ठुर हे सुत ,
बिछुरत प्रान न जाई ।
विरह में बिलखत………….
रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

 
							 
 
         
 
        