नहीं चाह पैसों की नाहीं प्रतीष्ठा…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

आजकल लोग पैसों के पीछे भाग रहे हैं जिससे रिश्ते नाते पीछे छूट रहे हैं, इस विषय पर मैने अपना भाव प्रकट किया है अपनी इस रचना के माध्यम से:—-

नहीं चाह पैसों की नाहीं प्रतीष्ठा ।
न लोभ न लालच न है कोई ईच्छा ।।
नहीं चाह पैसों की………..
मान से मद की उतपत्ति होती है भाई,
इन पैसों से होती है काली कमाई,
इन पैसों से होने लगी है अनिच्छा ।
नहीं चाह पैसों की………..
इन पैसों की खातिर बुरे कर्म होते,
इन पैसों की खातिर न चैन से सोते,
करके तो देखो भइ इसकी समीच्छा ।
नहीं चाह पैसों की………..
पैसा जरूरी है करलो कमाई,
पर पैसे के पीछे न दौड़ो हे भाई,
टूटे न अपनों से नाता औ रिश्ता ।
नहीं चाह पैसों की………..मोहे राखहु नाथ शरन में ।
ममता मोह में भूल गयो प्रभू ,
मन नाहीं लाग्यो भजन में ।
मोहे राखहु नाथ………….
बीच भँवर में नाव पड़ी है ,
डुबन चहत पल छन में ।
मोहे राखहु नाथ………….
आकर प्रभु जी मोहे उबारो ,
आयो तेरी शरन में ।
मोहे राखहु नाथ………….
तुम शरणागत पालक प्रभु जी ,
देदो शरन चरन में ।
मोहे राखहु नाथ…………..

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र