माता सब बालक राम चारो भाइयों को पालने में झुला रही हैं और आनन्द मगन हो रही हैं। अन्न धन वस्त्र सोना चाँदी मणि रत्न गाय हाथी घोड़ा सब लुटा रही हैं। काजल का टीका लगा रही हैं कि कहीं पुत्रों को नजर न लग जाय। देवता मुनि मनुष्य सभी स्तुति कर रहे हैं। अवध में घर घर बधाई बज रहा है। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :———
पालने में झुलत चारो भैया ।
कबहूँ कौशल्या कबहुँ कैकेई ,
कबहुँ झुलावै सुमीत्रा मैया ।
पालने में झुलत………..
राजा लुटावेलें अन धन सोनवाँ ,
रानि लुटावैं कपिल धेनु गैया ।
पालने में झुलत………..
काजल का टीका मैया लगावै ,
लागे नजर नाहिं लेत बलैया ।
पालने में झुलत………..
सुर नर मुनिजन स्तुति करहीं ,
बाजत अवध में घरे घर बधैया ।
पालने में झुलत………..
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र