रोटी कारन पिया परदेशी भए…ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

रोटी कमाने पति परदेश चला गया है और पत्नी विरह में व्याकुल उसके आने की प्रतीक्षा कर रही है। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :——

रोटी कारन पिया परदेशी भए ,
मोर लागै ना जिया ।
पापी पेट बड़ी हरजाई ,
प्रेमीजन को देत बिलगाई ।
मन को आवत नाहीं चैना ,
मोर लागै ना जिया ।
रोटी कारन पिया परदेशी भए……
दिन को चैन मोहे नहिं आवै ,
रतिया बिरहा मोहे सतावै ।
निन्दिया छोड़ गई मोरे नैना ,
मोर लागै ना जिया ।
रोटी कारन पिया परदेशी भए……
तड़पत रहौं पिया दिन राती ,
काहे भेजो नहीं पिय पाँती ।
मोरा दिल घबराए प्रियतम ,
जल्दी आओ हे पिया ।
रोटी कारन पिया परदेशी भए……..

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र