जारे जारे कजरारे कजरारे बदरा ….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

एक युवती का पति परदेस में है और वह विरह में व्याकुल होकर बादल से विनती कर रही है कि हे बादल तुम मेरा संदेश मेरे पति को पहुँचा दो । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:——

जारे जारे कजरारे कजरारे बदरा ।
मोरे पिया घर नाहीं मतवारे बदरा ।
जारे जारे कजरारे ……….
जबसे गए पिया सूनी रे सेजरिया,
नीको न लागै मोहे अंखियन कजरिया,
भावै श्रृंगार नाहीं नाहिं गजरा ।
जारे जारे कजरारे………..
जैयो पिया से तु कहियो रे बदरा,
मोर संदेशा सुनैयो रे बदरा,
रोवत रोवत धुलि गयो कजरा ।
जारे जारे कजरारे………..
बिरहन एक बिरह की मारी,
बिनती तो से करत बिचारी,
पिया को संदेशा पहुँचैयो बदरा ।
जारे जारे कजरारे………….

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र