आए कंत नहीं केहि कारन। …-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

आए कंत नहीं केहि कारन  —-

कर सोलह श्रृंगार दुल्हनियां,
करे पती इंतजार ।
आए कंत नहीं केहि कारन,
बीते पाहर चार ।।
किय कोई शौतन बिलमायो,
किय पिय भूले याद हमार ।
कैसे कटे आज की रतिया,
जियरा भयो बेजार ।।
आए तेहि छन कंत धनी के,
हिय में हर्ष अपार ।
जाय लिपटि गयो अंग पिया के,
सिकवा दियो बिसार ।।
कह ‘ब्रह्मेश्वर’ नारि हृदय अस,
कोमल करुण कनार ।
मोम सि नारी तुरत पसीजै,
यहि नारी का है श्रृंगार ।।

कनार = एक प्रकार का फूल

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र