उषा आई—-
रजनी छुपी उषा आई ।
बाल सूर्य की मधुर किरण ,
अमिय सदृश्य धरा पर छाई ।
मंदिर मँह घंटा धुनि गूँजे ,
पंछी कलरव शोर मचाई ।
खिले कमल बावलियों में ,
दिनकर देखि कुमुद सकुचाई ।
बिनवत सबहिं युगल कर जोरी ,
गणपति गौरि महेश रघुराई ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र