जीवन की नैया …-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

जीवन की नैया—

ये जीवन की नैया चली जा रही है ।
चलाना समझ कर भटकने न पाए ,
रखना नजर कहिं भँवर न डुबाए ,
बहती हवा कभि पछुवा पुरवैया ।
ये जीवन की नैया चली जा रही है ।
कर्मों कि पतवार ईश्वर खेवनहार ,
चाहे डुबा दे या तट पर लगा दे ,
कर्मानुसार खेवत है वो नैया ।
ये जीवन की नैया चली जा रही है ।

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र