मोबाईल ही जिन्दगी है—
जिन्दगी की भाग दौड़ में,
दिलों के बन्धन टूट गए ।
जबसे मोबाईल आया,
रिश्ते नाते पीछे छूट गए ।
अब तो जिन्दगी में,
न समय है न आराम है ।
न दिन है न रात है,
न सुबह है न शाम है ।
न अपनों का प्यार है,
न बच्चों का दुलार है ।
बस हाथ में मोबाईल है,
मोबाइल हीं प्यार है ।
यही जिन्दगी का सार है.
यही जिन्दगी का सार है ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र