एक किसान की पत्नी अपनी सखी से कह रही है कि मेरे पति किसानी करते हैं और ऐसा कह कर उसे अपने पति पर गर्व होता है। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है भोजपुरी में मेरी ये रचना:——-
मोरे सजना करे है किसानी,
सुनो री गोरिया ।
होत पराते उठि खेतवा में जाए,
बैलन्ह के संग लेके हलवा चलाए,
जाड़ा हो गर्मी हो बरसत हो पानी ।
सुनो री गोरिया ।
मोरे सजना करे है किसानी,
सुनो री गोरिया ।
खेतवा में उपजाए सोना अइसन धानवाँ,
गेहूँ जोवार बाजरा मटर मूँग चनवाँ,
दिन रात डटल रहे खेत खरिहानी ।
सुनो री गोरिया ।
मोरे सजना करे है किसानी,
सुनो री गोरिया ।
अनदाता जग के है मोर सजनवाँ,
एकरे से पेट भरे सारा जहनवाँ,
पिया मोर राजा हम सजना की रानी ।
सुनो री गोरिया ।
मोरे सजना करे है किसानी,
सुनो री गोरिया ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र