बढ़ते चलो बढ़ते चलो—–
जब तक रहे ये जिन्दगी ,
बढ़ते चलो बढ़ते चलो ।
नदियों कि धारा ज्यों चले ,
पर्वत का सीना चीर कर ।
हर विघ्न बाधा को हटाते ,
कंटकों को दूर कर ।
जब तक रहे ये स्वाँस ,
तुम बढ़ते चलो बढ़ते चलो ।
जब तक रहे ये जिन्दगी ,
बढ़ते चलो बढ़ते चलो ।
सूरज कभी थकता नहीं ,
संध्या कि वेला आने तक ।
थकना नहीं तुम भी कभी ,
तन छोड़ जी को जाने तक ।
जब तक रहे तन की चमक ,
बढ़ते चलो बढ़ते चलो ।
जब तक रहे ये जिन्दगी ,
बढ़ते चलो बढ़ते चलो ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र