संस्कार डूब रहा—-
जिन्दगी की रेश में ,
संस्कार डूब रहा ।
माता पिता बच्चों का ,
प्यार डूब रहा ।
माता पिता रहते हैं ,
बृद्धों के आश्रम में ।
संतानें रहती हैं ,
आया की कैद में ।
रिश्ते बिखर गए ,
न आपस का प्रेम रहा ।
जीवन अब ऊब रहा ,
संस्कार डूब रहा ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र