भक्ति की जोति सदा तु जलाओ .
(सवैया)
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जो तोहे प्रीत लगी हरि चरनन,
भक्ति की जोति सदा तु जलाओ।
हैं प्रभु दीनदयालु कृपालु,
सुनैंगें तुम्हारि तु सोच न लाओ।।
दर्शन बिनु तेरे प्यासे जो नैना,
तु चातक बनि निज रटन सुनाओ।
‘ब्रह्मेश्वर’ अब देहु दरश प्रभु,
शोक भगत के तु आके मिटाओ।।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र