रे मूरख ब्यर्थहिं जनम गवाँयो …….ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

बड़ी भाग्य से किसी को मानव शरीर मिलता है पर संसार में आकर मनुष्य प्रभु को भुला देता है और काम क्रोध मद लोभ मोह के वश होकर अनैतिक कार्य करने लगता है और अपना जन्म व्यर्थ गवाँ देता है और जब अंत समय आता है तो पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाता। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:–

रे मूरख ब्यर्थहिं जनम गवाँयो ।
पा कर पावन नर तन तुमने,
हरि को दियो भुलायो ।
भजन भाव नहिं कियो रे मूरख,
जनम अकारथ जायो ।
रे मूरख ब्यर्थहिं…………
काम क्रोध मद लोभ के वश हो,
हित अनहित न बुझायो ।
पर निन्दा पर द्रोह में रत हो,
पर तिय नेह लगायो ।
रे मूरख ब्यर्थहिं…………
सत संगत नहिं भायो तो को,
अधमन्ह संग निभायो ।
सुन्दर कर्म कियो नहिं मूरख,
अन्त समय पछतायो ।
रे मूरख ब्यर्थहिं…………

 

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

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