सजनवाँ का लेके जइब नइहरवा………ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

जीव ईश्वर की दुनिया से इस दुनिया में आता है और शरीर धारण करता है जिसमें सबसे उत्तम शरीर मनुष्य का होता है। जिस दुनिया से वह आता है वह उसका मायका है और जिस दुनिया में आकर शरीर धारण करता है वह उसका ससुराल है। प्रभु तो पृथ्वी पर उसे सत्कर्म करने के लिए भेजते हैं पर यहाँ आकर माया मोह में भूल कर बुरे कर्मों में रत हो जाता है और प्रभु को भूल जाता है फिर कैसे जा कर ईश्वर को मुँह दिखाएगा ? इस जगत से मनुष्य कुछ लेकर नहीं जाता सिर्फ कर्म हीं साथ जाता है पर सुन्दर कर्म तो किया नहीं फिर क्या लेकर मायके (प्रभु के द्वार ) जाएगा ? बुरे कर्मों को हीं न लेकर जाएगा ? इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है भोजपुरी में मेरी रचना निर्गुण भजन के रूप में :—–

सजनवाँ का लेके जइब नइहरवा ।
अइल ससुररिया जबहीं ,
माया में भुलइल ।
काम क्रोध मद में ,
उमरिया बितइल ।
अमरित के छोड़ि के खइल जहरवा ।
का लेके जइब नइहरवा ।
सजनवाँ का लेके जइब………..
कइल भजनियाँ नाहीं ,
प्रभु के भुलवल ।
कोरी चुनरिया में ,
दगिया लगवल ।
अनहित में लागल रहल आठो पहरवा ।
का लेके जइब नइहरवा ।
सजनवाँ का लेके जइब………..
सुन्दर करम ना कइल ,
जगवा में नाम हँसइल ।
गुरु पितु माता के ,
कबहूँ ना आदर कइल ।
कैसे जाके मुँहवाँ देखइब नइहरवा ।
का लेके जइब नइहरवा ।
सजनवाँ का लेके जइब…………

 

रचनाकार


   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र