प्रभु की माया के वश होकर मनुष्य प्रभु को भूल जाता है और जब अन्त समय आता है तो भरपेट पछताता है पर ज्योंहीं वह प्रभु की शरण में जाता है प्रभु की माया छूट जाती है। प्रस्तुत है शरणागत भजन के रूप में मेरी ये रचना :—-
प्रभु जी कि माया के वश ,
प्रभु को भुलायो जी ।
जानूँ न जप तप जोगा ,
भजन न भायो जी ।
प्रभु जी कि माया के वश……..
काम क्रोध मद में ,
उमरिया बितायो जी ।
अन्त समय जब आयो ,
मन पछतायो जी ।
प्रभु जी कि माया के वश………
करहू कृपा हे प्रभु जी ,
अवगुन भुलायो जी ।
अब प्रभु राखो शरन में ,
शरन तेरि आयो जी ।
प्रभु जी कि माया के वश………
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र