जगत में नहीं अमर कोइ प्रानी…….   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

संसार में कोई अमर होकर नहीं आया है। जो भी इस पृथ्वी पर आया है उसका एक दिन जाना निश्चित है। मनुष्य जोड़ तोड़ कर खूब कमाता है, ऊँचे ऊँचे महल खड़ा करता है पर सब कुछ यहीं रह जाता है, साथ कुछ नहीं जा पाता। यह धन सम्पत्ति जो आज तुम्हारा है वह कल किसी और का हो जाएगा फिर यह तेरा है यह मेरा है करने से क्या लाभ? इसलिए हे मानव! सुन्दर कर्म करो, कर्म ही तुम्हारे साथ जाएगा। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—-

जगत में नहीं अमर कोइ प्रानी ।
आया है सो जाएगा,
हर किसी कि यही कहानी ।
जगत में नहीं अमर………
जोड़ तोड़ कर खूब कमाया,
ऊँचे ऊँचे महल बनाया ।
सब कुछ तो एहिजै रहि जैहैं,
साथ न कुछ भी जानी ।
जगत में नहीं अमर………
आज जो तेरा है रे बन्दे,
कल किसी और का होगा ।
फिर तेरा मेरा क्यूँ करता,
अबहुँ चेत अभिमानी ।
जगत में नहीं अमर………
दुर्लभ नर तन पाकर बन्दे,
ब्यर्थहिं इसे गँवाया ।
अन्त समय जब आया रे बन्दे,
छाति पीटि पछतानी ।
जगत में नहीं अमर………
कह ब्रह्मेश्वर सुन रे बन्दे,
बिनु हरि भजन न होय अनन्दे ।
सुन्दर कर्म करो मोरे प्यारे,
कर्महिं साथ में जानी ।
जगत में नहीं अमर………

 

रचनाकार

   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र