जब सखियों ने सुना कि विचित्र बारात सजा कर पार्वती का दुल्हा आया है तो कहतीं हैं कि चलो पार्वती का दुल्हा देखने और शिव जी के अद्भुत रूप का वर्णन करती हैं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—
चलो री सजनी देखन गौरी दुलहवा ।
साँप के मौर साँपहिं के कुंडल,
साँप हीं के गरवा में हार सजनी ।
देखन गौरी दुलहवा ।
चलो री सजनी देखन………
अंग भभूती कटी बाघम्बर,
जटवा में गंगा की धार सजनी ।
देखन गौरी दुलहवा ।
चलो री सजनी देखन………
चन्द्र ललाट गले मुण्डमाला,
नैनन की शोभा विशाल सजनी ।
देखन गौरी दुलहवा ।
चलो री सजनी देखन………
कर डमरू त्रीशूल सुशोभित,
बसहा बैल पर सवार सजनी ।
देखन गौरी दुलहवा ।
चलो री सजनी देखन………
भुत बैताल पिशाच पिशाचिन,
नाचत हैं देइ देइ के ताल सजनी ।
देखन गौरी दुलहवा ।
चलो री सजनी देखन………
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र