हरषित हृदय राजा हिमाचल……… ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

राजा हिमाचल अपनी अर्द्धांगिनी मैना जी सहित विवाह मण्डप में अपार हर्ष के साथ अपने दामाद शिव जी का चरण पखार रहे हैं और अपने भाग्य की सराहना कर रहे हैं। जिस चरण की सेवा देवता, मुनि, मनुष्य, भूत बैताल निरंतर करते रहते हैं उसी चरण को पर्वतराज हिमाचल प्रेमपूर्वक पखार रहे हैं। सुहागन स्रियाँ मंगल गीत गा रहीं हैं और कहतीं हैं कि धन्य भाग्य है पर्वतराज की पुत्री पार्वती का जिसने वर रूप में जगत वन्दनीय शिव जी को प्राप्त किया। देवता सब दुंदुभी बजा रहे हैं और पुष्प की वर्षा कर रहे हैं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है छन्द में लिखी गई मेरी ये रचना :—-

हरषित हृदय राजा हिमाचल, चरन शिवहिं पखारहीं ।
देवन्हिं बजावत दुंदुभी, अंजलि सुमन बरसावहीं ।।
हरषित हृदय राजा हिमाचल………
जेहि चरन भुत बैताल सेवत, नाच नाच रिझावहीं ।
सोइ चरन पर्वतराज धोवत, भाग्य अमित सराहहीं ।।
हरषित हृदय राजा हिमाचल………
जेहि चरन सुर नर मुनिहिं ध्यावत, दृष्टी कृपा शिव चाहहीं ।
सोइ चरन पर्वतराज पूजत, धन्य भाग्य मनावहीं ।।
हरषित हृदय राजा हिमाचल………
पुलकित हृदय नारी सुहागन, गीत मंगल गावहीं ।
धन भाग्य पर्वत सुता गौरी, शिवहिं बर शुभ पावहीं ।।
हरषित हृदय राजा हिमाचल………

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रचनाकार

   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र