शिक्षक दिवस और मैं ——डॉ प्रशान्त करण

हमारे आर्यावर्त की सनातन संस्कृति इतनी अद्भुत रही कि गुरुकुल परम्परा तक छात्र हर दिवस को शिक्षक दिवस मानते रहे. पूरी श्रद्धा से शिक्षकों को पूजते रहे और पुत्रवत स्नेह से गुरु शिष्यों में ज्ञान की पूँजी भरते रहे. विदेशी आक्रमण के बाद आक्रांताओं ने सबसे पहले हमारी संस्कृति, पुस्तकालयों और फिर गुरुकुलों को षड्यंत्रपूर्वक नष्ट किए. बर्तानिया सरकार ने मेकौले की रणनीति पर शिक्षा व्यवस्था पर चोट किया. स्वतन्त्रता के दशकों बाद तक वही व्यवस्था लागू रही और गुरुकुलों का विरोध होता रहा. इसी बीच पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को स्मरण कर शिक्षक दिवस प्रारम्भ किया गया. एक ओर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा चलती रही, हममें हीन भावना भरी जाती रही तो दूसरी ओर हमें जाति, सम्प्रदाय और धर्म के नाम पर लड़ाया जाना बंद नहीं हुआ. इसी नेपथ्य में शिक्षक व्यवसायीकरण के मार्ग पर तीव्र गति से दौड़ने लगी. गुरु की महिमा, ज्ञान व शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर बढ़ता गया. हम इसी गौरवशाली कालखंड के यशश्वी छात्र रहे ! गुरु भी पीछे कहाँ रहे !सरकारी विद्यालयों के अधिकतर शिक्षक गुरु के पीछे घंटाल भी होने लगे !

हम गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु……. वर्ष में एक दिन किसी प्रकार से एक बार बोलने का प्रयास करते.उधर प्रथम शिक्षिका आधुनिक माताएं मॉम होने की प्रतिस्पर्धा में लीन, तल्लीन हो गयीं और आया के भरोसे बच्चे बड़े होने लगे. प्राथमिकता शिक्षा को छोड़ गयी. आजकल व्हाट्सएप्प और युट्यूब विश्वविद्यालय के ज्ञान खूब बंट रहे हैं.सभी गुरु – एक से बढ़कर एक. हम लघु ही रह गए.

रवि बाबू ने अचानक से ही शिक्षक दिवस की बधाई से आक्रमण कर दिया. मैंने पलटते ही उनको ही उल्टे बधाई दी. क्योंकि वे मूक – बधिर बच्चों को ज्ञान देते हैं. आस -पास के उच्च माध्यमिक के छात्र -छात्राओं को निःशुल्क पदार्थ विज्ञान और गणित पढ़ाते हैं. फिर अंत में मैंने उन्हें जो कहा उसे सार्वजनिक करता हूँ, मैंने कहा – भाईसाहब !कोई छात्र दिवस भी हो तो बताओ. मैं उस दिन छात्र दिवस मनाऊँगा

क्यों कि मैं पक्का छात्र हूँ. मुझे सब हिंदी से लेकर अंग्रेजी तक पढ़ा कर चले जाते हैं. देखने में मूढ़ जो लगता हूँ. अब अपने मुखमंडल को बदल पाना मेरे बस में नहीं. मुखौटे मुझे मिलते नहीं. सब साफ़ मना कर देते हैं. लेकिन आज भी नियमित रूप से बिना नागा मेरी धर्मपत्नी मेरा क्लास लेती हैं ! अपनी नियति छात्र की ही है. यह शिक्षक दिवस मुझसे न निभने वाला !