नए कीर्तिमान बना देना बहुत कठिन कार्य है। यह वर्षों के कठिन परिश्रम से होता है। और नए कीर्तिमान को स्वयं ही काटकर और नया कीर्तिमान लिख डालना अप्रतिम परिश्रम, अदम्य साहस, अथक धैर्य का प्रतीक है। जिसने सम्पूर्ण संकल्प शक्ति से एकाग्र चित्र होकर लक्ष्य की सिद्धि के लिए अपना तन-मन-धन न्यौछावर कर दिया, वे बिरले ही ऐसा कर पाते हैं। मुझे इस गर्व की अनुभूति आज प्रातःकाल अनायास हुई। गौरवान्वित होने के इस क्षण में मेरी प्रसन्नता की कोई सीमा ही नहीं रही। पाँव धरती पर नहीं पड़ रहे थे। आह्लाद इतना कि फूलकर कुप्पा होने लगा। टीशर्ट के बटन टूटने लगे। अचानक से ढीली टीशर्ट कसने लगी। मेरा दम घुटने लगा। घर के अंदर आकर टीशर्ट उतारी तो पाया कि बनियाइन से भी शरीर फूलता हुआ उसे तार-तार कर चुका है। बदन पर धोती लपेटकर थोड़ी लंबी स्वास ली। फिर सोचा कि इस नए कीर्तिमान में मात्र दृष्टा होने से मेरा मन इतना प्रफुल्लित हो उठा, मेरी क्या गति होती जब इस पुनीत और महान कार्य में मेरा आंशिक योगदान भी हुआ होता। योगदान तो कर नहीं पाया और मात्र दृष्टा होकर रह गया। इतना सोचकर मन को संतोष का विष पीला दिया। अब शरीर का फैलाव सिकुड़न में बदल चुका था। हीन भावना सिकुड़न उत्पन्न करती है।
मेरी एकलौती और सगी धर्मपत्नी मेरी अवस्था को देखकर अचम्भित थीं। उन्होंने समझाया कि दृष्टा हो तो दृष्टा की भांति ही चिंतन किया करो। श्रुति परम्परा से लिखी परम्परा में चारों वेदों को महर्षियों ने दृष्टा भाव से रचना की और अमरत्व को प्राप्त हुए। तुम नए कीर्तिमान के ध्वस्तीकरण और पुनर्निर्माण के साक्षी हो तो दृष्टा दृष्टिकोण के इस सिद्धांत से तुम्हें भी अमरत्व की प्राप्ति अवश्य होगी। पहली बार अपने ही अन्तःपुर के सफल प्रयास से मेरा मनोबल सातवें आसमान को छूने लगा।
तभी हमारी सोसाइटी के श्रीमन पाणिग्रही जी पधारे और अनभिज्ञ भाव से पूछ बैठे – आप स्वभावतः धीर-गंभीर रहते हैं, लेकिन आज अतिशय प्रसन्नता के कण आपके मुखमंडल से छिपाए नहीं छिप रहे। मामला क्या है? श्रीमन पाणिग्रही के इस अप्रत्याशित आक्रमण से मैं वैसे धराशायी हो गया जैसे मैं आईएमएफ से ऋण न मिलने से पाकिस्तान हो गया हूँ। सम्भलते हुए कहा – ऐसा कुछ नहीं। बस दृष्टा भाव से ही कृतज्ञता को प्राप्त हुआ हूँ। कल दीपोत्सव की रात्रि में अपनी सोसाइटी के ही परम् आदरणीय तथाकथित प्रेजिडेंट महोदय के नेतृत्व में गत वर्ष के दो कीर्तिमान न केवल ध्वस्त हुए अपितु दो नए कीर्तिमान स्थापित भी किए गए। यह दृढ संकल्प, सुदृढ़ इच्छाशक्ति और कठिन परिश्रम से सम्भव हुआ और मुझे इसका दृष्टा होने का परम्-चरम सौभाग्य प्राप्त हुआ। देखिये, समाज में जो नियम- कानून को ठेंगा दिखा सकता है, वही सम्माननीय, माननीय और आदरणीय होता है। रात्रि बारह बजे के बाद तक पटाखे फोड़ने का नया कीर्तिमान स्थापित हुआ, लेकिन यह उतना आनंदित नहीं कर सका। अधिक आनंदानुभूति तो आज प्रातः हुई। स्टेज के टाइल्स इस बार भी टूटे। विगत वर्ष का कीर्तिमान भी टूट गया और लगातार दूसरे वर्ष टाइल्स टूटने का क्रम भी न टूटा। अगर सभी ब्लॉकों के सोसाइटी वासी अपने-अपने ब्लॉक के पास फटाके फोड़ने में अपनी ऊर्जा व्यर्थ कर डालते, तो क्या गत वर्ष के कीर्तिमान टूटने का सौभाग्य मिलता? फिर क्या हमें दृष्टा होने का परम् सुख मिलता? मैं तो सोसाइटी के सभी पदधारियों का हृदय से आभारी हूँ। आखिर प्राथमिकता में मेरा दृष्टा सुख भी रखा गया। प्राथमिकता कीर्तिमान तोड़ने की थी। जोड़ना प्राथमिकता नहीं होती। तोड़ना जोड़ने से अधिक प्रसन्नता दे जाता है। महीनों से दक्षिण-पश्चिम कोने की टूटी चाहरदीवारी को जोड़ना सोसाइटी की प्राथमिकता नहीं थी। लोग आपस में टूट रहे हैं, हमें क्या? बर्चस्व तोड़कर सुख पाता है।
अब मेरे इस आक्रमण से श्रीमन पाणिग्रही जी ने चुप्पी साध ली। यह बड़बड़ाते हुए चले गए – अब मैंने ही बनवाई है यह कमिटी तो क्या करूँ? वे नाराज होकर चले गए। कोई श्रीमन पाणिग्रही जी मना भी दे और उन्हें सांत्वना भी तो दे!