गोपियाँ कहती हैं कि हे सखी देखो कन्हैया आ कर मटकी फोड़ गया। कुछ माखन खाया कुछ भूमी पर गिरा दिया और कुछ ग्वालों को बाँट दिया। जब हम बरजने दौड़े तो हमारी चुनरी खींच कर भाग गया पर हे सखी दिल की सच्ची बात बता रहे हैं हम, कन्हैया हमें बहुत अच्छा लगता है। जब वह इस प्रकार छेड़छाड़ करता है हमें बड़ा सुख मिलता है। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—-—
आयो कान्हा मटकिया फोड़ि गयो ।
छुप छुप के आयो कृष्ण कन्हैया ,
छिंकन्हिं तोड़ि गिराई गयो ।
आयो कान्हा मटकिया………
कुछ माखन मुख मे लपटायो ,
कुछ भूमी पर डारि गयो ।
आयो कान्हा मटकिया………
कुछ खायो कुछ मटकिन्ह रहि गयो ,
कुछ ग्वालन्ह को बाँट गयो ।
आयो कान्हा मटकिया………
देखो सखी जब बरजन धाई ,
चुनरी खींच पराई गयो ।
आयो कान्हा मटकिया………
साँचे कहूँ सखी दिल की बतिया ,
हृदय परम आनंद भयो ।
आयो कान्हा मटकिया………
वारि जाउँ तो पर हे रे कन्हैया ,
यह सुख बरनत नाहीं बन्यो ।
आयो कान्हा मटकिया……….
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र