सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
देश अब एक साथ चुनाव कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ा रहा है। केंद्र सरकार ने इस विचार को साकार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था, जिसने हाल ही में अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। इस रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की गई है, क्योंकि अधिकतर राजनीतिक दलों ने इस विचार का समर्थन किया है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से देश की विकास प्रक्रिया में तेजी आएगी। इसका मुख्य कारण यह है कि लगातार चुनावों की प्रक्रिया जटिल होती जा रही है। राजनीतिक दल और प्रशासनिक अधिकारी अधिकांश समय चुनाव की तैयारियों में ही व्यस्त रहते हैं, जिससे देश के विकास से जुड़े आवश्यक कार्य प्रभावित होते हैं।
बार-बार चुनाव होने से न केवल राजनीतिक दलों को चुनावी तैयारियों में ही उलझे रहना पड़ता है, बल्कि प्रशासन भी इससे प्रभावित होता है। हर वर्ष देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव होते रहते हैं, जिसके चलते आचार संहिता लागू हो जाती है और सरकारें अपने कार्यकाल में कोई बड़ा निर्णय नहीं ले पातीं। ऐसे में, एक साथ चुनाव कराना एक दूरगामी और सकारात्मक पहल मानी जा सकती है। यह केवल राजनीतिक दलों के कामकाज को नहीं बल्कि आम जनता के जीवन को भी सुगम बनाने में मददगार साबित होगा। इससे सरकारें बिना किसी व्यवधान के अपने कार्यों को अंजाम दे सकेंगी और देश के विकास की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा सकेंगी।
केंद्र सरकार की ओर से कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिन्हें समय से पहले पूरा किया गया है। एक साथ चुनाव कराने से ऐसी परियोजनाओं की रफ्तार और बढ़ सकती है। बार-बार होने वाले चुनाव देश की राजनीतिक लय को बाधित करते हैं और विकास के रास्ते में रुकावटें खड़ी करते हैं। यदि एक साथ चुनाव होते हैं, तो राजनीतिक और प्रशासनिक लय में सामंजस्य बना रहेगा, जिससे देश के विकास की प्रक्रिया में सुधार होगा।
देश में हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं, जिससे चुनावी आचार संहिता लागू हो जाती है। इसका सीधा असर सरकारी कामकाज पर पड़ता है, क्योंकि चुनाव के दौरान कोई नया निर्णय या योजना लागू नहीं की जा सकती। यह देश के विकास को प्रभावित करता है, क्योंकि सरकारें सिर्फ चुनाव जीतने की रणनीति बनाने में ही व्यस्त हो जाती हैं। एक साथ चुनाव कराने से यह समस्या हल हो सकती है, और सरकारें अपने कार्यकाल के दौरान विकास योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं।
इस विचार पर अधिकतर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है, जबकि कुछ क्षेत्रीय दलों ने अपनी असहमति जताई है। क्षेत्रीय दलों का मानना है कि उनके लिए चुनावी प्रक्रिया में बड़े बदलाव से नुकसान हो सकता है। हालांकि, यह विचार देश के विकास और समग्र राजनीति को ध्यान में रखकर लिया गया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में बनी समिति ने भी इस विचार का समर्थन किया है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान एक साथ चुनाव कराने पर जोर दिया था और इसे देश के विकास के लिए आवश्यक बताया था।
स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में भारत में एक साथ चुनाव की प्रक्रिया चलती रही थी। लेकिन समय के साथ राज्यों में मध्यावधि चुनाव होने लगे और यह सिलसिला टूट गया। इसके बाद से चुनाव अलग-अलग समय पर होते रहे हैं, जिससे देश के राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे पर अतिरिक्त भार पड़ा है।
एक साथ चुनाव कराने से देश को राजनीतिक स्थिरता मिलेगी, और चुनावी खर्चों में भी कमी आएगी। यह विचार कई विकसित देशों द्वारा अपनाया जा चुका है, जो चुनावी प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाने में सफल रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए भी एक साथ चुनाव का विचार विकास की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकता है।
जब से नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई है, तब से राष्ट्रीय हित में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। एक साथ चुनाव कराने का विचार भी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस कदम से न केवल देश की राजनीतिक स्थिरता मजबूत होगी, बल्कि विकास की दिशा में भी नए अवसर खुलेंगे। सरकार की मंशा है कि देश की जनता के हितों को सर्वोपरि रखा जाए, और इसके लिए एक साथ चुनाव की पहल एक साहसिक कदम है।
एक साथ चुनाव कराना केवल एक राजनीतिक विचार नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय हित का मुद्दा है। इसके माध्यम से देश में विकास की धारा को एक नई दिशा मिल सकती है। राजनीतिक दलों और जनता को इस पहल का स्वागत करना चाहिए, क्योंकि इससे देश के विकास में बाधा बनने वाले कई कारक दूर होंगे।