अवध में गुनी एक आयो जी ……- ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

जब शिव जी ने सुना कि भगवान राम का जन्म हो गया है तो दर्शन की लालसा से ज्योतिषी का वेष बना कर अवध की गलियों मे घूमने लगे । कौशल्या जी की एक दासी ने रानी को यह बात बताई । रानी ने ज्योतिषी को महल में बुलवा लिया । चरण पखार कर सुन्दर आसान पर बैठाया, प्रेम से भोजन कराया और चारो पुत्रों को ज्योतिषी जी के चरण पर रख कर भविष्य पूछा । ज्योतिषी बने शिव जी बार बार चारो पुत्रों को गोद में ले कर एक टक इस अलौकिक रूप को निहार रहे हैं । इतने मगन हैं कि शरीर की सुध भूल गए हैं । फिर बहुत प्रकार से चारो पुत्रों का भविष्य बता कर प्रभु के बाल स्वरूप को हृदय में धारण कर अपने लोक को गए । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–

अवध में गुनी एक आयो जी ।
नाम बतावत शंकर आपनु ,
तेज पुंज दमकत दुति आननु ,
अगम जनायो जी ।
अवध में गुनी एक…………..
रानी कौशल्या महल बुलवायो ,
चरन पखारि आसन बैठायो ,
भोग लगायो जी ।
अवध में गुनी एक…………..
चारहु सुत चरनन पर राखी ,
आगमी अगम बहू विधि भाखी ,
देखि लुभायो जी ।
अवध में गुनी एक…………..
लै लै गोद चन्द्रमुख निरखत ,
छायो नयन जल तनु सुधि विसरत ,
उर लपटायो जी ।
अवध में गुनी एक…………..
उर धरि बाल छवी द्विज शंकर ,
बार बार चरनन सिरु धरि कर ,
सदन सिधायो जी ।
अवध में गुनी एक………….

गुनी = ज्योतिषी , दुति = कान्ति , आननु = मुख
आगमी = ज्योतिषी , अगम = भविष्य , सदन = घर

 

रचनाकार

  ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र