झारखंड में इंडी गठबंधन: टूट के कगार पर

झारखंड की राजनीति में एक नया अध्याय लिखा जा रहा है, जिसमें सत्ताधारी इंडी गठबंधन की एकजुटता पर गंभीर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इस समय सभी संकेत इस ओर इशारा कर रहे हैं कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाला यह गठबंधन टूट के कगार पर है। यदि यह स्थिति बनी रही, तो न केवल राज्य की राजनीतिक स्थिरता प्रभावित होगी, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों में भी गठबंधन के दलों की संभावनाएं गंभीर खतरे में पड़ सकती हैं।

गठबंधन में शामिल झामुमो, कांग्रेस, राजद और माले जैसे दल एक दूसरे के खिलाफ खड़े होते जा रहे हैं। पहले से ही विभिन्न सीटों को लेकर आपसी झगड़ा प्रारंभ हो चुका है, जिसमें खासकर माले का रुख और भी कड़ा दिखाई दे रहा है। माले को बगोदर, सिंदरी, और निरसा की सीटें दी गई हैं, लेकिन वे धनवार और जमुआ पर भी अपने दावों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। माले ने धनवार से पूर्व विधायक राजकुमार यादव को उम्मीदवार घोषित किया है, जबकि झामुमो ने भी इस सीट पर निजामुद्दीन अंसारी को अपना प्रत्याशी बनाया है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि गठबंधन में आपसी सहमति का अभाव है।

गठबंधन की स्थिति और भी जटिल तब हो गई जब कांग्रेस ने राजद के खिलाफ बिश्रामपुर में अपने उम्मीदवार की घोषणा की। राजद ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए छतरपुर में अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया। इस प्रकार, धनवार, बिश्रामपुर, और छतरपुर में गठबंधन के प्रत्याशी एक-दूसरे के सामने खड़े हो गए हैं। इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इंडी गठबंधन के भीतर की एकजुटता खतरे में है और वे अब केवल दिखावे के लिए भी एकजुटता का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं।

हेमंत सोरेन की चुनौती यह है कि वे सभी दलों को एकजुट रख सकें, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वे इसे सही तरीके से करने में असमर्थ हो रहे हैं। उनकी खुद की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं और बोकारो सीट पर कब्जा करने की कोशिश ने गठबंधन में दरारों को और भी बढ़ा दिया है। मंटू यादव को बोकारो सीट देने की योजना ने न केवल कांग्रेस को नाराज किया है, बल्कि अन्य सहयोगियों के साथ भी उनकी स्थिति को कमजोर कर दिया है। क्या हेमंत सोरेन इस जटिल राजनीतिक परिस्थिति से बाहर निकल पाएंगे? यह एक बड़ा सवाल है।

माले के राज्य सचिव मनोज भक्त ने इस स्थिति पर चिंता जताते हुए गठबंधन के दलों को चेतावनी दी है कि यदि 24 घंटे के भीतर सीटों के विवाद का समाधान नहीं हुआ, तो माले आठ सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने के लिए मजबूर होगा। यह चेतावनी केवल माले की नाराजगी को दर्शाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि यदि गठबंधन दलों का रवैया नहीं बदला, तो यह गठबंधन झारखंड की राजनीति के लिए बहुत नुकसानदायक साबित हो सकता है।

कांग्रेस की स्थिति भी इस मामले में जटिल है। वे राजद को पांच सीटें देने का दावा कर रहे हैं, जबकि राजद का कहना है कि उसे छह सीटें मिली हैं। इस तरह के बयानों से स्थिति और भी खराब हो रही है और इन दोनों दलों के बीच विश्वास की कमी को उजागर कर रही है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या इन दलों के बीच आपसी समन्वय और विश्वास की कमी को दूर किया जा सकेगा?

दूसरे चरण के नामांकन की प्रक्रिया जारी है, और यह स्पष्ट है कि यदि स्थिति में सुधार नहीं होता, तो और अधिक विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। इंडी गठबंधन की अस्थिरता से न केवल उसके सदस्य दलों को नुकसान होगा, बल्कि यह उनके मतदाता आधार पर भी असर डालेगा। यदि ये दल एकजुट नहीं हो पाते, तो इसका सीधा लाभ एनडीए को मिल सकता है, जो कि इस समय गठबंधन की कमजोरी को अपनी राजनीतिक रणनीति में बदलने के लिए तत्पर है।

इस सन्दर्भ में, यह आवश्यक है कि सभी दल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को किनारे रखकर एकजुटता का प्रयास करें। राज्य की राजनीतिक स्थिरता और विकास के लिए यह जरूरी है कि वे अपनी नीतियों में समन्वय स्थापित करें और चुनावी तैयारियों में एकजुटता का संदेश दें। अगर ये दल अपने आपसी मतभेदों को सुलझाने में असफल रहते हैं, तो झारखंड में सत्ता का समीकरण पूरी तरह बदल सकता है।

इस स्थिति में, हेमंत सोरेन को अपनी नेतृत्व क्षमता को साबित करने का मौका है। उन्हें चाहिए कि वे सभी दलों के बीच संवाद स्थापित करें और इस बात का प्रयास करें कि हर दल को उनकी उचित हिस्सेदारी मिले। इससे न केवल गठबंधन की एकजुटता बरकरार रहेगी, बल्कि यह सभी दलों के लिए राजनीतिक रूप से फायदेमंद भी होगा।

इंडी गठबंधन की भविष्यवाणी अब इस पर निर्भर करती है कि वे अपने भीतर के मतभेदों को कितनी जल्दी सुलझा सकते हैं। यदि यह न किया गया, तो झारखंड की राजनीति में एक नया भूचाल आ सकता है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों को एकजुटता के रास्ते पर चलना होगा, अन्यथा उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।