तैयारी चुनाव की – नौ ………..-  डॉ प्रशान्त करण

रघुवंशी जी बहुत तनाव में हैं . उनके प्रस्तावक का ही उनसे सैद्धांतिक मतभेद हो गया है . वे पिछली बार डेढ़ सौ मतों से ही हारे तो थे , फिर इसमें घुन्नू बाबू क्यों उम्मीद लगाए थे कि टिकट उन्हें मिले ? हैरानी इस बात की थी कि घुन्नू बाबू पहले क्यों नहीं बताए . दल के नेताओं ने उन्हें प्रस्तावक बनाया था , तब भी नहीं बोले . आज नाम नामांकन की अंतिम तिथि है तो नामांकन पत्र लेकर दिखा रहे हैं . पार्टी के कई बड़े नेताओं को उन्होंने अप्रत्याशित खर्च देकर उन्हें मनाने भेज दिया . चालीस हजार का खर्च बैठे – बिठाए मुँह उठाए आ गया . मन दबाकर उन्होंने अपनी जेब खाली किया .लेकिन पाँच घंटे हो गए , वे सब लौटे नहीं . रघुवंशी जी सोचने लगे कि कहीं उनके द्वारा टिकट के बदले पार्टी को दिया गया दो करोड़ का चंदा बेकार तो नहीं गया ? क्या घुन्नू बाबू ने ढाई करोड़ दे दिया ? उनको किसने यह माल दिया होगा ? अचानक याद आया कि उनके साथ जाली नोट छापने के आरोप से सप्ताह भर पहले कारागार से छूटे रंगीला बाबू ने तो घुन्नू के नाम पर निवेश तो नहीं किया ? ससुरे दोनों सप्ताह भर से साथ चिपके हैं . दूसरे किसी का सामर्थ इतना तो है नहीं . उन्होंने पार्टी के राज्य के बड़े नेता को फोन लगाया और रंगीला को साधने की चिरौरी की . बड़े नेता ने पाँच सधे पदाधिकारियों को रंगीला के घर भेज दिया . बीस हजार का अतिरिक्त खर्च का बोझ वे सह गए . इस तनाव में रघुवंशी बाबू ने दातौन तक नहीं किए थे . तभी घुन्नू बाबू के यहाँ गए लोग लौट आए . गंभीर थे . बोले – घुन्नू मान नहीं रहा है . कहता है कि पार्टी से टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय लड़ूँगा . पच्चीस हजार वोट तो ले ही आऊँगा . बड़ी कठिनाई से माना है कि रघुवंशी अगर एक करोड़ आज दें तभी सोच सकता हूँ . रघुवंशी भी कम घाघ नहीं थे . बोले – घुन्नू लाख जोर लगा लें , लेकिन सात हजार से अधिक वोट नहीं ला सकते . गणना की हुई है . वे खड़े होंगे तो जानते हैं कि जीत नहीं सकते , लेकिन हमारे लिए चुनौती खड़ी कर सकते हैं . आप उनको साफ़ कह दीजिए कि हम दस लाख से एक पैसा भी अधिक उनको नहीं देंगे . नहीं तो घुन्नू बाबू चुनाव लड़ ही लें . मध्यस्तता कराने वाले घुन्नू के पास फिर गए . इधर रंगीला के यहाँ से भी लोग लौट आए . बोले – रंगीला को समझा दिया है . वह निवेश नहीं करेगा , उसका तीन बड़ा बिल अटका है , आपकी पकड़ है , उसको निकलवा दीजिये . रघुवंशी ने चैन की साँस ली . फिर घुन्नू भी बड़ी कठिनाई से दस लाख में मान गए . तब तक शाम हो गयी थी .

अब रघुवंशी जी समझ चुके थे कि सारे खेल की जड़ में जरूर कहीं न कहीं भैया जी ही न हों . इसलिए अब भैया जी के विरुद्ध कैसे भीतरघात कराया जाए कि उनसे संभाले न सम्भले और अपनी गोटी लाल हो जाए . उन्होंने अपने पीए को बुलाकर कान में कहा – रात में सब की दृष्टि बचाकर फल मंडी की सौ दुकानों में आग लगानी है और हमलोगों पर संदेह तक न हो . पीए बोले – एक पगला वहीं रात में घूमता है , उसी से करवा देते हैं . कंबल ओढ़कर , मुँह छिपाकर जाएंगे . उसके पहले लाइन कटवा देंगे कि ससुरे सीसीटीवी में न आएं . काम बन गया . भैया जी अच्छे – खासे परेशान हैं . उनके हजार वोट गए और साख गिर गयी क्योंकि अवैध फल मंडी उन्होंने ही बसवाये थे .