-पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘
वैसे तो बोकारो विधानसभा में भाजपा उम्मीदवार बिरंचि नारायण की जीत लगभग तय मानी जा रही है फिर भी कांग्रेस उम्मीदवार स्वेता सिंह के राजपूत और मुस्लिम वोट तथा जयराम महतो की उम्मीदवार सरोजा देवी के कुर्मी वोट हथिया लेने की आशंका भाजपा के लिए इस चुनाव को जटिल बना दिया है। जाहिर से अच्छे प्राप्तांक के लिए इस बार विरंचि नारायण को ज्यादा ही म्हणत करनी पड़ेगी।
बीते सालों में विरंचि नारायण पर यह आरोप लगता रहा है उन्होंने ने फ़ॉरवर्डों का नफरत की हद तक तिरस्कार किया। बैकवॉर्डों में तेली जाति छोड़ कर बाकियों को भी काफी नज़रअंदाज़ किया। अभी वक़्त है आदिवासी वोटों के संधान के अलावा असंतुष्टों को भी मनाया जाय। कांग्रेस उम्मीदवार स्वेता सिंह का फॉरवर्ड होना भाजपा के लिए आफत ला सकता है , इसका समाधान विरंचि नारायण को ही ढूँढना होगा। पार्टी के भीतर और बाहर असंतुष्टों को साधे बिना यह चुनाव सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम पर नहीं जीता जा सकेगा।
झारखण्ड की डेमोग्राफी बदलाव और बांग्लादेशी घुसपैठियों पर अगर नियंत्रण करना है तो राज्य में किसी राष्ट्रवादी सरकार का बनना अत्यंत आवश्यक है – ऐसा अनेक राजनितिक विशेषज्ञों का मानना है। इस हिसाब से झारखण्ड विधानसभा चुनाव में बोकारो ही नहीं बल्कि एनडीए को पुरे झारखण्ड में अधिकांश सीटें जितनी होगी। ऐसी अवस्था में नई सीटें जितने के साथ साथ इसका भी इत्मीनान करना होगा कि हाथ की सीटें हाथ से बाहर ना निकल जाएँ। ऐसे में बोकारो विधानसभा से अमर कुमार बाउरी और विरंचि नारायण की भूमिकाएं काफी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। झारखण्ड भाजपा में बाबूलाल मरांडी के बाद दोनों सबसे बड़े पदों पर विराजमान हैं। एक तो नेता प्रतिपक्ष भी है। काल्पनिक तौर पर मान लिया जाय कि इस चुनाव में ये दोनों अपनी सीटें गावं देते हैं तो बस भाजपा दो सीटें नहीं हारेगी , बल्कि पूरी झारखण्ड भाजपा का मनोबल टूट कर बिखर जाए तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं !
फिलहाल कांग्रेस उम्मीदवार स्वेता सिंह की राह कही न कहीं आसान नज़र आ रही है। ऐसे में इस बार भी स्वेता सिंह नहीं जीत पाती हैं तो फिर कभी भी नहीं जीत पाएंगी। उसी प्रकार इस बार विरंचि नारायण के लिए राहें ज्यादा जटिल हैं , इस बार अगर विरंचि नारायण जीत जाते हैं तो फिर उन्हें कभी भी हराना संभव नहीं -ऐसा ही प्रतीत होता है। विरंचि नारायण इन परिस्थितियों के प्रति कितने संज़ीदा हैं ये तो परिणाम ही बताएँगे , लेकिन विरंचि नारायण के लिए जीतने का यह अंतिम मौका है। शायद झारखण्ड भाजपा इन पर आगे दावँ न लगाए। विरंचि नारायण द्वारा अब तक किये गए चुनावी कार्यक्रम नाकाफी से दीखते हैं। उन्हें असंतुस्टों पर और और ज्यादा मेहनत करनी चाहिए।
वैसे ही एनडीए घटक दल से बाहर आये वर्तमान झामुमो प्रत्याशी उमाकांत रजक भी भाजपा प्रत्याशी अमर कुमार बाउरी के लिए एक सफल प्रतियोगी साबित हो सकते हैं। चूकिं दोनों एनडीए का हिस्सा रहे हैं तो सामान चुनावी निति से दोनों अवगत हैं। अमर कुमार बाउरी को घात – प्रतिघात की नई नीतियां आजमानी होंगी। चंदनकियारी में अमर बाउरी के भी जीतने के पुरे आसार दीखते तो हैं किन्तु यहाँ भी उमाकांत रजक और जयराम महतो फैक्टर अमर बाउरी को कठिन चुनावी टक्कर देगा – इस बात में कोई संदेह नहीं।
दरअसल दिक्कत यह हो गई है कि विगत चुनाव जीतने के बाद दोनों ने अपनी-अपनी जातियो को छोड़ कर अपने विधान सभा क्षेत्र में किन्हीं को मुँह नहीं लगाया। जीत के बाद एक जनप्रतिनिधि को अपने चुनावक्षेत्र में सबको सामान रूप से देख रहे हों ऐसा ही दिखना पड़ता है। इस मामले में दोनों के लिए इस चुनाव में काम बढ़ गया है। वैसे तो मोदी और भाजपा की ढाल इनकी रक्षा कर रही है फिर भी अब इस चुनाव में ऊँट इनके करवट बैठे इसकी पूरी जिम्मेदारी इन्हीं दोनों पर है।