प्रभु श्रीराम वन में चले गए हैं। भरत जी भाई विरह में व्याकुल होकर विलाप कर रहे हैं। प्रस्तुत है इसी प्रसंग पर भोजपुरी में मेरी ये रचना :——-
काहें गैल भैया हो अवधवा के छोड़ि के ।
तोह के पुकारत अवध के वासी ,
अवध के कण कण में छवलस उदासी ,
काहें गैल भैया हो अवध से मुहँवा मोड़ के ।
काहें गैल भैया हो अवधवा के………..
मैया पुकारत तोहके राम राम कहिके ,
अँखियन के नीर सुखाइ गैलें बहि के ,
काहें गैल भैया हो मैया से नेहिया तोड़ि के ।
काहें गैल भैया हो अवधवा के………..
खग मृग बेलि बृक्ष तोहके पुकारत ,
सरयू के तट तोरे रहिया निहारत ,
कब अइब भैया हो बनवाँ के छोड़ि के ।
काहें गैल भैया हो अवधवा के……….…
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र