भजले चरन कमल रघुराई…….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रस्तुत है मेरी ये रचना जिसमें मैने प्रभु के चरण कमल की वन्दना की है :—-

भजले चरन कमल रघुराई ।
जेहि चरनन से सुरसरि निकली ,
जग तारनी कहाई ।
जेहि चरनन से तरी अहिल्या ,
शिला नारि बनि जाई ।
भजले चरन कमल………..
जेहि चरनन केवँट धोइ लिन्हा ,
तब हरि नाव चढ़ाई ।
जेहि चरनन की चरन पादुका ,
भरत रहे चित लाई ।
भजले चरन कमल………..
जेहि चरनन सुर नर मुनि सेवत,
बहु बिधि जतन कराई ।
जेहि चरनन कंचन मृग पीछे,
बाण चढ़ाई धाई ।
भजले चरन कमल………..
जेहि चरनन में प्रान त्याग कर ,
गिद्ध परम पद पाई ।
जेहि चरनन से बैर भगति कर,
रावण मोक्ष सिधाई ।
भजले चरन कमल………..
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रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र