– पूर्णेन्दु ‘पुष्पेश’
आज पचपन वर्ष की उम्र पार करने के बाद यह बात जितनी स्पष्ट और गहरी समझ में आती है, काश उतनी ही बचपन में समझ आ पाती। तब शायद ठोकरें कम लगतीं, रास्ते जल्दी बनते और सफर थोड़ा आसान होता। पर सच यह भी है कि समझ वहीं आती है, जहाँ जीवन हमें सिखाना चाहता है; और जीवन की सबसे बड़ी सीख यही है कि असफलता पराजय नहीं है।
सफलता और असफलता जीवन की यात्रा के आवश्यक पड़ाव हैं। हम सफलता पर तालियाँ बजाते हैं, पर असफलताओं को अपमान, भय और निराशा के साथ जोड़कर देखते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि Failure is not defeat -यह सिर्फ संकेत है कि अभी रास्ता पूरा नहीं हुआ, कोशिशें अधूरी हैं और अनुभवों को और गहरा होना है। दुनिया के महान वैज्ञानिक, नेता, विचारक और उद्यमी अगर पहली या दसवीं असफलता के बाद रुक जाते, तो इतिहास अधूरा रह जाता।
असफलता किसी व्यक्ति की क्षमता का नहीं, बल्कि उसके प्रयासों का परिणाम होती है। परीक्षा में असफलता का अर्थ यह नहीं कि छात्र अयोग्य है; व्यापार में घाटा आने का मतलब यह नहीं कि व्यापारी असक्षम है; और जीवन के किसी क्षेत्र में ठोकर खाने से व्यक्ति कमजोर नहीं होता। असफलता बस यह बताती है कि चुना हुआ तरीका पर्याप्त नहीं था। इसलिए असफलता समाधान तक पहुँचने की सीढ़ी है, मंज़िल का अंत नहीं।
आज के समय में समाज ने असफलता को एक कलंक की तरह बना दिया है। बच्चे, युवा, खिलाड़ी, कलाकार—सभी कहीं न कहीं इस अज्ञात दबाव के शिकार हैं कि असफल होने का मतलब है हार जाना। पर वास्तव में हार वही मानता है जो प्रयास छोड़ देता है। जो असफल होता है, वह कम से कम कोशिश करने का साहस तो रखता है, और यही साहस सफलता की पहली शर्त है।
थॉमस एडिसन का वह प्रसिद्ध वाक्य- “मैं असफल नहीं हुआ, मैंने सिर्फ हजार ऐसे तरीके खोजे जो काम नहीं करते”, केवल एक कथन नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। यही दृष्टिकोण गांधी, विवेकानंद, अब्दुल कलाम, स्टिव जॉब्स जैसे लोगों में था; और यही दृष्टि उन्हें असंभव के पार ले गई।
जीवन हमें बार-बार गिराता है, ताकि हम बार-बार उठना सीखें। असफलता धैर्य, विश्वास, आत्मबल और दृढ़ निश्चय का प्रशिक्षण है। यह हमें भीतर से मजबूत बनाती है, दृष्टि साफ करती है और हमें वह बनने में मदद करती है जिसके योग्य हम हैं।
लेकिन अक्सर देखा गया है कि दो-चार असफलताओं के बाद लोग टूट जाते हैं। वे खुद को दोषी मान लेते हैं, अवसाद में चले जाते हैं, खुद को दूसरों से कम समझने लगते हैं, यानी जीवित होते हुए भी जीवन से बाहर हो जाते हैं। यही सबसे बड़ी विफलता है जब इंसान जीते हुए सपने देखना छोड़ दे।
इसलिए जरूरी है कि असफलता को अंत नहीं, एक अवसर की तरह देखा जाए। हर बार गिरने पर उठना सीखें। खुद के लिए, अपने अपनों के लिए, और उससे भी बड़े उद्देश्य -राष्ट्र के लिए।
राष्ट्र आपकी बात जोह रहा है। जिस जमीन पर आपका जन्म हुआ , आप उसके ऋणी हैं। राष्ट्र निर्माण में आप अपना दायित्व तय करें और उसे पूरा भी करें ; यही राष्ट्र की आपसे अपेक्षा है। और यह तभी संभव है जब आप अपनी असफलताओं से नहीं भागें। असफलताओं का डर आपके सभी मार्ग अवरुद्ध कर देती हैं। क्योंकि जो प्रयास करता है, वही भविष्य बदलता है।
और यह उक्ति वैसे सबको ही पता होती है –
हार तब नहीं होती जब इंसान असफल होता है,
हार तब होती है जब वह प्रयास करना छोड़ देता है।

