बोकारो : शराब के सरकारी ठेकों पर ग्राहकों से निर्धारित मूल्य (प्रिंट रेट) से अधिक पैसे वसूलने की शिकायतें आम होती जा रही हैं। स्थिति यह है कि ग्राहकों से न्यूनतम 30 रुपये और अधिकतम ‘ओवर रेट’ शराब के ब्रांड और बोतल के साइज के आधार पर वसूले जाते हैं। यह शिकायतें कोई नई नहीं हैं, लेकिन आबकारी विभाग की तरफ से कोई सख्त कार्रवाई देखने को नहीं मिली है। उल्टा, ठेकेदार इस खुलेआम लूट को जायज ठहराते हुए दावा करते हैं, “सर! आबकारी से लेकर थाना तक सबको हिस्सा देना पड़ता है। घर से थोड़े न देंगे।”
सिस्टम की खामियां और भ्रष्टाचार का खेल
यह समस्या केवल एक ठेके तक सीमित नहीं है। बोकारो के सेक्टर इलाकों से लेकर जिले के अन्य प्रखंडों में भी यही हाल है। ग्राहकों का कहना है कि पहले ठेकेदार कुछ खास लोगों को प्रिंट रेट पर शराब दे दिया करते थे, लेकिन अब हर किसी से ‘ओवर रेट’ वसूला जाता है। अगर कोई इसका विरोध करे, तो ठेकेदार ग्राहकों से बहस करने और लड़ने तक को तैयार रहते हैं।
हमारी टीम ने बोकारो जिले के 12 अलग-अलग शराब काउंटर्स पर जमीनी हकीकत जांचने की कोशिश की। मीडिया का हवाला देने के बावजूद अधिकांश काउंटरों ने बोतल की कीमत में महज 10-20 रुपये की ही छूट दी। ठेकेदारों का तर्क है, “घर से लगाकर धंधा कैसे करेंगे?”
मूल कारण: भ्रष्ट तंत्र
शराब व्यापार से जुड़े लोगों का कहना है कि ठेकेदारों को ऊपर तक पैसे पहुंचाने पड़ते हैं। आबकारी विभाग, पुलिस, और अन्य संबंधित एजेंसियों को मोटा हिस्सा देना पड़ता है, जिससे मजबूरी में यह अतिरिक्त रकम ग्राहकों से वसूली जाती है। सवाल यह है कि जब झारखंड सरकार ही शराब व्यापार को नियंत्रित करती है, तो यह भ्रष्ट तंत्र कैसे फल-फूल रहा है?
इस धंधे की कुछ अनाम कड़ियाँ बताती हैं कि यदि ठेकेदारों से 100 रुपये की अतिरिक्त वसूली की जाती है, तो अंतिम ग्राहक से 200 रुपये वसूल लिए जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि यह समस्या निचले स्तर पर शुरू नहीं होती, बल्कि इसकी जड़ें ऊपर तक फैली हैं।
आबकारी विभाग की भूमिका पर सवाल
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आबकारी विभाग इस मामले में निष्क्रिय क्यों है? क्या यह विभाग खुद इस भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा है, या फिर यह मिलीभगत जानबूझकर की जा रही है? यदि ऐसा नहीं है, तो ओवर रेटिंग रोकने के लिए अब तक सख्त कदम क्यों नहीं उठाए गए?
पीड़ित कौन?
इस भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा खामियाजा झारखंड के शराब उपभोक्ता भुगत रहे हैं। उनकी स्थिति यह हो गई है कि प्रिंट रेट पर शराब खरीदने के लिए उन्हें दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ सकता है।
समाधान क्या है?
इस समस्या का समाधान केवल सख्त प्रशासनिक कार्रवाई और भ्रष्टाचार के सोर्स पर लगाम कसने से ही संभव है। यदि सरकार इस तंत्र को पारदर्शी नहीं बनाती, तो आम उपभोक्ता का शोषण जारी रहेगा।
आबकारी विभाग और राज्य सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वे जनता को भरोसा दिलाएं कि उनके अधिकारों और कानून का पालन सुनिश्चित किया जाएगा। अन्यथा, यह सवाल हमेशा खड़ा रहेगा कि झारखंड के शराब ग्राहक आखिर न्याय के लिए कहां जाएं?