बोकारो में परिवर्तन की जरूरत, नहीं तो हार तय है

रिपोर्ट : विशेष संवाददाता

बोकारो विधानसभा क्षेत्र में मौजूदा विधायक बिरंची नारायण के प्रति जनता में गहरी असंतोष की भावना दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। जनता के बीच चर्चा का विषय है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान ऐसा कोई महत्वपूर्ण विकास कार्य नहीं किया, जो उन्हें फिर से सत्ता में लाने के योग्य ठहराए। उनके प्रति नाराजगी और निराशा इतनी बढ़ चुकी है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सामने एक स्पष्ट विकल्प खड़ा हो गया है— या तो वे नया उम्मीदवार चुनें या फिर आगामी चुनाव में हार का सामना करें।

वर्तमान बोकारो विधायक बिरंची नारायण को जनता के विकास के प्रति उदासीनता और गैर-जिम्मेदाराना रवैये के लिए आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। लोगों का मानना है कि उनके कार्यकाल के दौरान बोकारो के बुनियादी ढांचे में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। सड़कों की हालत जस की तस बनी हुई है, स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी दयनीय है, और स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों में कोई विशेष सुधार देखने को नहीं मिला। यही नहीं, क्षेत्र में शिक्षा और विकास की योजनाएं भी ठोस क्रियान्वयन से दूर रही हैं।

बोकारो एक औद्योगिक शहर होने के बावजूद, रोजगार और निवेश के नए अवसरों की कमी ने शहर की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया है। बिरंची नारायण ने बोकारो के औद्योगिक विकास और इसके नए आयामों को तलाशने में विफलता दिखाई है। भाजपा ने चुनावों में जिन मुद्दों को प्रमुखता से उठाया था, उन पर ध्यान न देने का खामियाजा अब बिरंची नारायण को भुगतना पड़ रहा है। जनता का मानना है कि नारायण ने अपने व्यक्तिगत हितों को प्राथमिकता दी, जिसके कारण क्षेत्र का समुचित विकास संभव नहीं हो सका।

आज जब चुनाव समीप हैं, बोकारो की अधिकतर जनता एक बदलाव की मांग कर रही है। शशि सम्राट जैसे भाजपा नेताओं ने भी खुलकर नारायण के खिलाफ आवाज़ उठाई है, जो पार्टी के भीतर भी विभाजन की स्थिति को दर्शाता है। सम्राट का यह कहना कि भाजपा उनकी “माँ” जैसी है, लेकिन मौजूदा विधायक के प्रति समर्थन अस्वीकार्य है, इस बात की ओर इशारा करता है कि बिरंची नारायण की लोकप्रियता और राजनीतिक आधार दरक चुका है।

भाजपा के प्रदेश नेतृत्व के सामने अब यह सवाल है कि क्या वे बिरंची नारायण जैसे असफल विधायक को फिर से टिकट देकर जनता के असंतोष को और बढ़ाएंगे या फिर एक नया चेहरा पेश करेंगे, जो पार्टी को एक नई दिशा में ले जा सके। अगर पार्टी ने नारायण को फिर से उम्मीदवार बनाया, तो जनता के असंतोष के चलते हार तय है। ऐसे में भाजपा को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे एक ऐसे उम्मीदवार को चुनें जो जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरे।

भाजपा के लिए यह सही समय है कि वे जनता के असंतोष को समझें और नया उम्मीदवार पेश करें। एक ऐसा चेहरा, जो बोकारो के विकास को प्राथमिकता दे, जनता की समस्याओं को समझे और उनके समाधान के लिए ठोस कदम उठाए। यदि भाजपा ने बिरंची नारायण के बजाय किसी नए और ऊर्जावान उम्मीदवार को टिकट दिया, तो पार्टी के पास एक बार फिर से जनता का भरोसा जीतने का मौका होगा।

नया उम्मीदवार पार्टी के लिए जीत की गारंटी भले ही न हो, लेकिन एक बात स्पष्ट है— बिरंची नारायण को उम्मीदवार बनाया गया, तो हार निश्चित है। भाजपा को यह भी समझना होगा कि चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार के सिर्फ पार्टी का नाम या पार्टी के उच्चाधिकारियों का प्रिय होना काफी नहीं होता, बल्कि उस नेता का काम और उसकी छवि भी अहम होती है, जो जनता के दिलों में बसती है।

लोगों का कहना हैं कि वैसे भी बिरंची नारायण की राजनीति हमेशा विवादों से घिरी रही है। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप, क्षेत्रीय विकास में विफलता, और पार्टी के भीतर की अंदरूनी कलहें हमेशा चर्चाओं में रही हैं। बोकारो के लोग यह महसूस कर रहे हैं कि नारायण ने अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दी, जिसके चलते क्षेत्र का विकास ठप हो गया है।

कई बार यह भी देखा गया है कि नारायण ने क्षेत्रीय नेताओं और जनता के साथ उचित संवाद नहीं बनाया। उनका यह रवैया जनता के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाता है, जो एक जनप्रतिनिधि के लिए बेहद निंदनीय है। विकास के मोर्चे पर भी नारायण ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए, जिससे बोकारो की जनता उनसे और भी ज्यादा दूर हो गई है।

भाजपा के लिए यह चुनाव महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं, क्योंकि पार्टी के झारखंड में भविष्य की दिशा इसी चुनाव पर निर्भर करेगी। यदि पार्टी ने जनता के असंतोष को नजरअंदाज किया और बिरंची नारायण को फिर से टिकट दिया, तो इसका खामियाजा पूरे प्रदेश में भुगतना पड़ सकता है। भाजपा के लिए यह सही समय है कि वे बोकारो में नए चेहरे को मौका दें, जो जनता के बीच विश्वसनीयता बना सके और विकास के एजेंडे को आगे बढ़ा सके।

नया उम्मीदवार भाजपा के लिए जीत की कुंजी हो सकता है। भले ही नए उम्मीदवार के जीतने की संभावनाएं शत-प्रतिशत न हों, लेकिन वह पार्टी के भविष्य के लिए एक सकारात्मक दिशा में कदम हो सकता है। बिरंची नारायण की राजनीति और उनके कार्यकाल की विफलताओं के चलते जनता अब बदलाव चाहती है। ऐसे में अगर भाजपा ने नए उम्मीदवार को मैदान में उतारा, तो जनता में एक सकारात्मक संदेश जाएगा और पार्टी की साख भी बची रहेगी।

बोकारो विधानसभा की जनता अब उस बदलाव की प्रतीक्षा कर रही है, जो उनके विकास और प्रगति के लिए आवश्यक है। बिरंची नारायण की असफलताएं और जनता में उनके प्रति असंतोष इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भाजपा के लिए नया उम्मीदवार प्रस्तुत करना आवश्यक हो गया है। यदि भाजपा ने इस अवसर का सही ढंग से इस्तेमाल किया, तो पार्टी के लिए जीत का मार्ग खुल सकता है। अन्यथा, नारायण को पुनः उम्मीदवार बनाने का फैसला पार्टी को चुनावी हार की ओर धकेल सकता है।

आखिरकार, भाजपा के सामने एक स्पष्ट विकल्प है— या तो वे बोकारो की जनता की मांग को समझें और नया चेहरा प्रस्तुत करें, या फिर चुनावी हार को निश्चित मानें। इस बात की प्रबल संभावना दिखाई देती है।