द्रौपदी चीर हरण पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना। द्रौपदी की आर्त पुकार सुन कर भगवान कृष्ण ने उसकी लाज रखी। यही प्रसंग है मेरी रचना का :-—
अब रखियो तु लाज हमारी ,
प्रभू जी मैं तो आई शरन में ।
बीच सभा में दुष्ट दुशासन ,
खींचत चीर हमारी ।
प्रभू जी मैं तो आई शरन में ।
अब रखियो तु लाज हमारी…….
भिष्म द्रोण गुरु कृपाचार्य सब ,
बैठे हाथ पसारी ।
प्रभू जी मैं तो आई शरन में ।
अब रखियो तु लाज हमारी…….
पाँच पती बैठे मन मारी ,
केहू न राखनहारी ।
प्रभू जी मैं तो आई शरन में ।
अब रखियो तु लाज हमारी…….
आरत बचन सुनी जब प्रभु ने ,
दिन्हीं बसन पट डारी ।
प्रभू जी मैं तो आई शरन में ।
अब रखियो तु लाज हमारी…….
खैंचत चीर दुशासन हारा ,
राखी लाज मुरारी ।
प्रभू जी मैं तो आई शरन में ।
अब रखियो तु लाज हमारी……
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र