झारखंड के नाम एक ऐसा रिकॉर्ड है जिससे वह पीछा छुड़ाना चाहेगा। गृह मंत्रालय की जुलाई में जारी रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में बाल विवाहों का फीसद सबसे ज्यादा है। सेंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम द्वारा 2020 में किए गए एक जनसांख्यिकीय सेंपल सर्वे के अनुसार बाल विवाह का राष्ट्रीय औसत जहां 1.9 है वहीं झारखंड में यह 5.8 फीसद है। इसमें भी राज्य में शहरी इलाकों में बाल विवाह की दर तीन फीसद के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में यह दोगुनी से भी ज्यादा 7.3 फीसद है।
झारखंड को विकास के सभी मानकों पर एक पिछड़ा राज्य माना जाता है। लेकिन इसके बावजूद यहां के ग्रामीण इलाकों के युवा बदलाव की नई इमारत लिख रहे हैं। ये साबित कर रहे हैं कि यदि दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में थोड़ा सरकारी प्रोत्साहन हो और जमीनी स्तर पर कोई हिम्मत और समर्थन देने वाला हो तो बदलाव असंभव नहीं है। ये हिम्मत आई है जमीनी स्तर पर सरकारी और गैरसरकारी संगठनों के प्रयासों और जागरूकता अभियानों से। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने पिछले साल 16 अक्तूबर को बाल विवाह के खिलाफ दुनिया का सबसे बड़ा अभियान शुरू किया था। देश के 26 राज्यों के 500 जिलों के दस हजार गांवों की 70,000 से भी अधिक महिलाओं और बच्चों की अगुआई में चले इस अभियान में दो करोड़ से भी अधिक लोगों ने हिस्सेदारी की और बाल विवाह के खिलाफ शपथ ली।
कहना न होगा कि यात्रा के केंद्र में बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल थे जहां सबसे ज्यादा बाल विवाह होते हैं। सत्यार्थी द्वारा स्थापित संगठन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन (केएससीएफ) बाल मित्र ग्राम जैसी कई अभिनव पहलों के माध्यम से राज्य के सुदूर आदिवासी इलाकों में बच्चों को नेतृत्वकारी भूमिका में रखते हुए बाल विवाह के खिलाफ अभियान चला रहा है। साथ ही, केएससीएफ के 21 सहयोगी गैरसरकारी संगठन राज्य के सभी 21 जिलों में पिछले एक साल से बाल विवाह के खिलाफ गहन जनजागरूकता अभियान चला रहे हैं। यह अभियान गांव-गांव पहुंच रहा है और नतीजे में कहीं बेटियां खुद अपना बाल विवाह रुकवाने आगे आ रही हैं तो कहीं भाई अपनी बहन को बाल विवाह से बचाने के लिए आगे आ रहे हैं।
सबसे ताजा उदाहरण है साहिबगंज जिले के मंडरो प्रखंड के पिंडरा पंचायत के गांव महली टोला का। महज तेरह साल की एक बच्ची को उसके माता-पिता ने किसी के खूंटे से बांधना तय कर दिया। 15 जून 2023 को बारात आने वाली थी। इधर, बच्ची का मौसेरा भाई रघुनाथ अपनी मासूम बहन के विवाह की खबर से परेशान था। उसने मौसा-मौसी को समझाने की बहुत कोशिशें कर ली। बच्ची के माता-पिता अपनी जिद पर अड़े थे तो रघुनाथ किसी भी हाल में बहन का बाल विवाह नहीं होने देने की जिद पर अड़ा था। आखिर में ठीक बारात आने के दिन रघुनाथ ने इसकी सूचना गांव की मुखिया पकु मुर्मू को दी और बहन का बाल विवाह रुकवाने की गुहार लगाई। मुखिया खुद मौके पर पहुंची और खबर की पुष्टि के बाद उन्होंने एक गैरसरकारी संगठन, बाल विवाह निषेध अधिकारी (सीएमपीओ) और स्थानीय थाने को इसकी सूचना दी। गैरसरकारी संगठन के सदस्यों के साथ पुलिस व प्रशासनिक अमला मौके पर पहुंचा और बच्ची का बाल विवाह रुकवाया।
ऐसी सिर्फ दो-चार नहीं बल्कि झारखंड के गांवों में अनगिनत कहानियां हैं जहां भाई ने बहन का और चाचा ने भतीजी का बाल विवाह रुकवाया है। इन कहानियों में छिपी है एक सुखद बदलाव की आहट। वो यह कि आंकड़े भले ही भयावह हों लेकिन हालात बदलने की कोशिश जारी है। सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) ने 2030 तक दुनिया को बाल विवाह मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है। जमीनी स्तर पर आ रहे बदलावों को देखते हुए माना जा सकता है कि तब तक बाल विवाह मुक्त भारत का लक्ष्य भले ही पूरी तरह हासिल नहीं किया जा सके लेकिन हम इसके काफी करीब होंगे।
– आदर्श सिंह, वरिष्ठ पत्रकार