सम्पादकीय – पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘
‘ऑपरेशन ‘सिन्दूर ‘ के बाद हमें इस समय की बदलती रणनीति को गंभीरता से समझना चाहिए। भारत अब केवल हमलों का शिकार देश नहीं, बल्कि आतंकवाद को पैदा करने, पालने और प्रचारित करने वालों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मोर्चा खोल चुका है। पिछले कुछ दिनों में भारत ने दुनिया के अलग-अलग कोनों में, अपने नेताओं, कूटनीतिज्ञों और सांसदों के जरिए एक स्पष्ट संदेश दिया है—आतंकवाद को अब केवल निंदा नहीं, बल्कि नाम लेकर बेनकाब किया जाएगा। पाकिस्तान, जो दशकों से इस वैश्विक समस्या का मुख्य प्रायोजक रहा है, अब सिर्फ भारत के गुस्से का नहीं, बल्कि उसकी सुनियोजित कूटनीतिक मुहिम का भी लक्ष्य बन चुका है। यह लड़ाई अब सिर्फ बंदूक या बम से नहीं, बल्कि शब्दों की धार, मंचों की ताकत और वैश्विक सहयोग से लड़ी जा रही है—जिसमें भारत पूरे आत्मविश्वास और रणनीतिक स्पष्टता के साथ आगे बढ़ रहा है।
कहीं कुवैत में ओवैसी पाकिस्तान को “स्टुपिड जोकर्स” कह रहे हैं, तो कहीं ऑस्ट्रिया में जयशंकर पाकिस्तान को “आतंकवाद का केंद्र” घोषित कर रहे हैं। ये घटनाएं केवल बयान नहीं हैं, बल्कि ये भारत की नई विदेश नीति का हिस्सा हैं जिसमें ‘नाम लेकर, ठोक कर, और बिना लाग-लपेट के’ बात करने का दौर शुरू हो गया है। इस मुहिम में दिलचस्प बात ये रही कि इसमें सिर्फ सत्ताधारी दल ही नहीं, बल्कि विपक्ष के नेता भी शामिल हैं। सब अपनी अपनी पार्टी लाइन विस्तार कर देशमय हो गए हैं।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ऑस्ट्रिया में पाकिस्तान को एकदम साफ-साफ शब्दों में आतंकवाद का केंद्र बताया। उन्होंने कहा कि अब पाकिस्तान से बिना शर्त बातचीत का कोई मतलब नहीं रह गया है। उन्होंने ये भी कहा कि पाकिस्तान की तरफ से खालिस्तानी ताकतों को समर्थन मिलना बेहद खतरनाक संकेत है। जयशंकर की भाषा में जो स्पष्टता है, वो भारत के बदले हुए तेवर को दर्शाती है।
दूसरी तरफ AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कुवैत में भारतीय प्रवासी समुदाय को संबोधित करते हुए पाकिस्तान की सेना और वहां के प्रधानमंत्री पर तीखा हमला बोला। उन्होंने पाकिस्तान की उस हरकत को उजागर किया जिसमें 2019 के चीनी सैन्य अभ्यास की तस्वीर को भारत की सैन्य जीत के रूप में पेश किया गया था। ओवैसी ने पाकिस्तान के ऐसे प्रयासों को “स्टुपिड जोकर्स” का काम बताया। ये पहली बार नहीं था जब उन्होंने पाकिस्तान की आलोचना की हो, लेकिन कुवैत जैसे देश में खड़े होकर ऐसा बोलना एक बड़ा संदेश था।
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने पनामा में कहा कि भारत को बार-बार पाकिस्तान से पीड़ा और नुकसान उठाना पड़ा है। उनका बयान सधा हुआ था लेकिन उसमें दर्द भी था, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह बताने की कोशिश थी कि भारत आतंकवाद से कैसे जूझ रहा है। थरूर का अंदाज़ राजनयिक था लेकिन भावनात्मक गहराई से भरपूर।
भाजपा के राज्यसभा सांसद समिक भट्टाचार्य ने पेरिस में एक और गंभीर खतरे की तरफ इशारा किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अब बांग्लादेश को भी आतंकवाद के लिए लॉन्चपैड के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पाकिस्तान को एक ‘आतंकी राज्य’ घोषित करने की अपील की। ये बयान सिर्फ चेतावनी नहीं था बल्कि एक नीति-सुझाव भी था।
राजीव प्रताप रूडी ने दोहा में एक बहुदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में कहा कि भारत अब आतंकवाद के खिलाफ सख्त नीति अपना चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई भारत पर आतंकी हमला करता है तो भारत न सिर्फ जवाब देगा, बल्कि उन देशों को भी जिम्मेदार मानेगा जो ऐसे हमलों को समर्थन देते हैं।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी मिशन की प्रथम सचिव भविका मंगलानंदन और उप स्थायी प्रतिनिधि रवींद्र ने भी पाकिस्तान की पोल खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भविका ने बताया कि पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों के निशान दुनिया भर में हैं, जबकि रवींद्र ने आतंक के वित्तपोषण पर रोक लगाने और लक्षित प्रतिबंध लगाने की ज़रूरत पर बल दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात की एक जनसभा में पाकिस्तान की रणनीति को बेनकाब करते हुए कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद को सरकारी नीति के रूप में अपनाता है। उन्होंने कहा कि भारत द्वारा मारे गए आतंकवादियों को पाकिस्तान में राजकीय सम्मान दिया जाना इस बात का सबूत है। मोदी का यह बयान भारत के घरेलू जनमत को भी दृढ़ करता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चेतावनी भी देता है।
भारत के विदेश मंत्रालय में आतंकवाद विरोधी मामलों के संयुक्त सचिव के.डी. देवाल ने इंडोनेशिया और कजाकिस्तान में हुई बैठकों में कहा कि आज के आतंकवादी सिर्फ बंदूक नहीं चला रहे, बल्कि टेक्नोलॉजी और साइबर माध्यमों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में सभी देशों को आपसी सहयोग, सूचनाओं का आदान-प्रदान और नई तकनीकों के साझा उपयोग की ओर कदम बढ़ाना होगा।
अमेरिका में भारतीय अल्पसंख्यक फाउंडेशन के बहु-धार्मिक प्रतिनिधिमंडल ने न्यूयॉर्क में 9/11 स्मारक पर श्रद्धांजलि दी और आतंकवाद की खुली निंदा की। उन्होंने आतंकवाद को मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया और वैश्विक नेताओं से अपील की कि वो एकजुट होकर इसका मुकाबला करें। इस पहल ने भारत के नैरेटिव को भावनात्मक और प्रतीकात्मक बल दिया।
तुर्की को भी भारत ने चुपचाप नहीं छोड़ा। भारत ने साफ कह दिया कि अगर तुर्की पाकिस्तान को आतंकवाद में समर्थन देता रहा, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। भारत ने यह भी कहा कि तुर्की को पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए कि वह आतंकवादी नेटवर्क को खत्म करे। यह सीधी चेतावनी उस दौर की याद दिलाती है जब भारत की विदेश नीति सिर्फ प्रतिक्रियात्मक होती थी—अब वह सक्रिय और आक्रामक हो चुकी है।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि विपक्ष और सत्ता पक्ष के नेताओं ने मिलकर भारत की एकजुट छवि पेश की। यह दुर्लभ है कि ओवैसी, थरूर और जयशंकर जैसे भिन्न वैचारिक नेता एक ही दिशा में बयान दें। लेकिन जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा की हो, तो भारत की राजनीति भी राष्ट्रहित में एकजुट हो जाती है।
अब सवाल ये नहीं है कि भारत ने क्या कहा, सवाल ये है कि दुनिया ने इसे कितना सुना। भारत का आतंकवाद के खिलाफ रुख अब सिर्फ बयानबाज़ी नहीं है, ये अब रणनीति है। और इस रणनीति में भावनाएं हैं, तथ्य हैं, अनुभव हैं और सबसे जरूरी—एक दृढ़ इच्छाशक्ति है।
भारत अब साफ-साफ कह रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग सिर्फ हथियारों की नहीं, बल्कि शब्दों, नैरेटिव और कूटनीति की भी है। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि अब झूठे दावे, फर्जी तस्वीरें और दोहरी बातें काम नहीं आएंगी। भारत के तेवर बदल चुके हैं।
और अब जो भारत बोलता है, वो सिर्फ दक्षिण एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया सुनती है।