क्यों अमेरिका भारत से भयभीत है?

– पूर्णेन्दु ‘पुष्पेश ‘ विश्व राजनीति के इतिहास में अमेरिका लंबे समय तक एकमात्र शक्ति केंद्र माना जाता रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद…

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आपातकाल: अतीत की छाया और वर्तमान की चेतावनी

Article by Purnendu Sinha Pushpesh भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 26 जून 1975 एक ऐसा दिन है जिसे अनदेखा करना भूल होगी और भुला देना…

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‘उमेद’ (भोजपुरी कविता) — पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’

‘उमेद’(भोजपुरी कविता) ई आखिर कवन चीज़ के — तोर-मोर?केकरा से — तोर-मोर?! एक्के अंगना में खेललऽ,एक्के अंगना में पललऽ,सनातन से इहे माटी में बढ़लऽ!आ आज…

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भारत की आज़ादी में झारखंड क्षेत्र का योगदान : क्रांति की धरती से स्वाधीनता की राह तक

जब हम भारत की स्वतंत्रता की गाथा को पढ़ते हैं, तो हमारे सामने दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, और लाहौर जैसे बड़े शहरों की तस्वीरें उभरती हैं।…

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खोता बचपन, जागती व्यवस्था

Editorial by : Purnendu Sinha ‘Pushpesh’    झारखंड, एक आदिवासी बहुल राज्य, अपने सांस्कृतिक वैभव और प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद आज देश में बच्चों की…

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जनप्रतिनिधित्व की साख पर सवाल: श्वेता सिंह प्रकरण और लोकतंत्र की परीक्षा

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘  किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ उसकी पारदर्शी और जवाबदेह राजनीतिक व्यवस्था होती है। और जब वही व्यवस्था सवालों के…

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तीखी कूटनीति : आतंकवाद के खिलाफ भारत की वैश्विक हुंकार

सम्पादकीय – पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘    ‘ऑपरेशन ‘सिन्दूर ‘ के बाद हमें इस समय की बदलती रणनीति को गंभीरता से समझना चाहिए। भारत अब…

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भ्रष्टाचार की हाँडी और नौकरशाही का काला चावल

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘ झारखंड की धरती एक बार फिर उसी दाग़ से सनी है, जो बरसों से इसकी छवि को मलिन करता रहा…

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बोकारो की जनता को बहकाना नहीं, सच्चाई बताना जरूरी है

सम्पादकीय: पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘   लोकतंत्र की बुनियाद उस भरोसे पर टिकी होती है जो जनता अपने प्रतिनिधियों पर करती है। जब यह भरोसा टूटता…

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