- PURNENDU SINHA PUSHPESH
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में बोकारो विधानसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार विरंचि नारायण और कांग्रेस की प्रत्याशी श्वेता सिंह के बीच मुकाबला दिलचस्प बन गया है। इस चुनाव में जहाँ एक ओर बीजेपी उम्मीदवार होने के चलते विरंचि नारायण की जीत की संभावना प्रबल दिखती है, वहीं उनकी व्यक्तिगत कार्यक्षमता और सक्रियता पर सवाल उठते रहे हैं। दूसरी ओर, श्वेता सिंह एक योग्य और समर्पित उम्मीदवार के रूप में जानी जाती हैं, परंतु कांग्रेस से जुड़े होने के कारण उनके जीतने की संभावनाएँ कुछ धुंधली दिखाई देती हैं।
विरंचि नारायण: पार्टी की लहर का लाभ, पर व्यक्तिगत कार्यक्षमता पर सवाल
विरंचि नारायण को बीजेपी का नाम उनके लिए एक बड़ा संबल है, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जैसे राष्ट्रीय नेताओं के कारण। झारखंड के मतदाताओं के बीच बीजेपी की मजबूत पकड़ है, और इसी वजह से विरंचि नारायण को भी इसका सीधा लाभ मिल सकता है। हालांकि, उनके व्यक्तिगत स्तर पर किए गए कार्यों में अधिक प्रभावशाली योगदान की कमी देखी गई है। कई मतदाता उनकी कार्यशैली और सक्रियता पर असंतोष जताते हैं। विरंचि नारायण पर असमर्थ विधायक का आरोप कई मतदाताओं की निराशा को भी दर्शाता है, लेकिन उनके बीजेपी से जुड़ाव ने उनकी स्थिति को काफी हद तक सुरक्षित किया है।
बोकारो में, जहाँ मतदाता आज भी विकास और बुनियादी आवश्यकताओं को सर्वोपरि मानते हैं, ऐसे में विरंचि नारायण की व्यक्तिगत सक्रियता की कमी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकती है। हालाँकि, पार्टी का मजबूत समर्थन और मोदी-शाह जैसे नेताओं का नाम मतदाताओं को बीजेपी के पक्ष में खड़ा कर सकता है, जिससे विरंचि नारायण की चुनावी संभावनाएं भी मजबूत हो जाती हैं।
श्वेता सिंह: योग्य उम्मीदवार, पर कांग्रेस का जुड़ाव एक बड़ी कमजोरी
श्वेता सिंह, कांग्रेस की उम्मीदवार हैं और अपनी योग्यता, नेतृत्व क्षमता और जमीनी स्तर पर काम करने की इच्छा के कारण मतदाताओं में एक अच्छी छवि बना चुकी हैं। वह एक सक्रिय और सक्षम उम्मीदवार के रूप में सामने आई हैं, जो जनता की जरूरतों को बेहतर ढंग से समझती हैं और समाधान खोजने के लिए प्रयासरत हैं। उनका कुशल नेतृत्व और उनकी मेहनत बोकारो के कई समुदायों के बीच उनकी पहचान को मजबूत बनाता है।
हालांकि, श्वेता सिंह की एकमात्र लेकिन बड़ी कमजोरी यह है कि वह कांग्रेस पार्टी से जुड़ी हैं, जिसका झारखंड में जनाधार और संगठनात्मक स्थिति कमजोर है। मुस्लिमों के एक मुश्त वोट पानेवाली पार्टी और एंटी नेशनल व भ्रष्टाचार का इमेज रखने वाली कांग्रेस के पुराने रिकॉर्ड और कमजोर राजनीतिक स्थिति के कारण कई मतदाता उनके प्रति असमंजस में हैं। कांग्रेस पार्टी की छवि और राजनीतिक सीमाओं ने उनकी क्षमता पर एक तरह का नकारात्मक प्रभाव डाला है। यद्यपि कई समुदाय, विशेषकर फॉरवर्ड्स, कुर्मी, और कुम्हार समुदाय इस बार श्वेता सिंह का समर्थन कर सकते हैं, परंतु यह समर्थन विरंचि विरोधी भावना पर ही अधिक आधारित है, न कि कांग्रेस की लोकप्रियता पर।
बीजेपी की लहर का प्रभाव
झारखंड में बीजेपी की लहर का प्रभाव पूरे चुनाव पर दिखाई दे रहा है। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह का प्रभाव और उनकी सरकार की नीतियों का सकारात्मक असर झारखंड के मतदाताओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। लोग बीजेपी के प्रति विश्वास और स्थिरता को महत्व देते हैं, और उन्हें पार्टी की नीतियों में अपने विकास और सुरक्षा की संभावनाएं दिखती हैं। इस लहर का फायदा विरंचि नारायण को भी मिलेगा, क्योंकि उनके पीछे बीजेपी का सशक्त समर्थन और नेताओं का प्रभाव है।
विरंचि नारायण का बीजेपी उम्मीदवार होना उन्हें बोकारो की जनता के लिए एक भरोसेमंद और सुरक्षित विकल्प तो नहीं बनाता है, किन्तु बीजेपी की लहर और मोदी-शाह का समर्थन उनकी व्यक्तिगत कार्यक्षमता की कमी को काफी हद तक ढक सकता है। मतदाताओं के लिए एक मजबूत नेतृत्व और झारखण्ड में स्वस्थ व स्थिर सरकार का प्रतिनिधित्व अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है, जो विरंचि नारायण को वोट देने का एक बड़ा कारण बन सकता है।
मतदाताओं की असमंजसता
बोकारो विधानसभा के मतदाताओं के सामने दो प्रमुख विकल्प हैं—बीजेपी से विरंचि नारायण, जो पार्टी का समर्थन प्राप्त होने के बावजूद व्यक्तिगत रूप से प्रभावी नेता साबित नहीं हुए हैं; और कांग्रेस से श्वेता सिंह, जो व्यक्तिगत रूप से मजबूत हैं, लेकिन पार्टी की कमजोर स्थिति उनकी संभावना को प्रभावित कर सकती है।
यह स्पष्ट है कि बीजेपी का समर्थन विरंचि नारायण की व्यक्तिगत कार्यक्षमता की कमी को ढकने में सहायक हो सकता है, जबकि श्वेता सिंह की योग्यता और कार्यक्षमता पार्टी की कमजोर छवि के कारण अंधेरे में छिपी रह सकती है। मतदाता इस बार एक बड़ी दुविधा में हैं कि क्या वे एक अक्षम विधायक को चुनें क्योंकि उसके पीछे बीजेपी का समर्थन है, या एक सक्षम उम्मीदवार का चयन करें, जिसका कांग्रेस से जुड़ाव उसकी सफलता के रास्ते में बड़ी बाधा बन सकता है।
बीजेपी का नाम ही विरंचि नारायण की जीत की कुंजी?
बोकारो विधानसभा में विरंचि नारायण की जीत की संभावनाओं को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि उनकी व्यक्तिगत कार्यक्षमता पर सवाल उठाए जाने के बावजूद, बीजेपी का समर्थन ही उन्हें चुनावी सफलता दिला सकता है। मोदी-शाह का प्रभाव और बीजेपी की लहर ने विरंचि नारायण के राजनीतिक भविष्य को एक नई दिशा देने की संभावना दी है।
वहीं, श्वेता सिंह जैसी सक्षम और कर्मठ उम्मीदवार होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी का कमजोर आधार उन्हें चुनावी जंग में पीछे कर सकता है। कई लोगों का मानना है कि श्वेता सिंह अगर झामुमो उम्मीदवार भी होतीं तो बात कुछ अलग होती। यह चुनाव केवल विरंचि नारायण या श्वेता सिंह के व्यक्तिगत गुणों का मूल्यांकन नहीं है, बल्कि यह बीजेपी और कांग्रेस के राजनीतिक प्रभाव और मतदाताओं की धारणाओं का भी परीक्षण है।
बोकारो में एक सत्य और है कि फॉरवर्ड, तेली के अलावा अन्य बैकवार्ड तथा एससी एसटी जनता बीजेपी द्वारा विरंचि नारायण के नाम की घोषणा से जहाँ हतोत्साहित हुए थे वही श्वेता सिंह का नाम उम्मीदवार के रूप में घोषित होने से….. !
एक बात और . ….चुनाव प्रचार की सघनता और सरसता भी परिणामों के लिए निर्णायक सभी होगी। पक्की बात !