सम्पादकीय : पूर्णेन्दु पुष्पेश।
ये अलग बात है कि आजकल ‘बरसात ‘ का मौसम चल रहा है; फिर भी , जल संकट की स्थिति तेजी से गंभीर होती जा रही है, और झारखंड इसका एक स्पष्ट उदाहरण है। हमारे देश के कई हिस्सों में भूजल का स्तर खतरनाक रूप से नीचे चला गया है, जिससे कृषि, विशेष रूप से सिंचाई के लिए पानी की अधिक आवश्यकता वाली फसलें, बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। झारखंड में भी स्थिति कोई अलग नहीं है। यहां भूजल स्तर की गिरावट ने न केवल कृषि, बल्कि आम जनजीवन को भी प्रभावित किया है।
हाल के दिनों में, कम पानी की जरूरत वाली वैकल्पिक फसलों की ओर रुख करने और सूक्ष्म सिंचाई को अपनाने की सिफारिशें सामने आई हैं। हालांकि, यह एक विडंबना ही है कि हमारे देश में पारंपरिक जल संरक्षण के तरीके सदियों से प्रचलित थे, फिर भी हम उनसे दूर हो गए हैं। इस बिंदु पर विचार करना आवश्यक है कि आखिर क्यों और कैसे हमने पानी की अहमियत को नजरअंदाज कर दिया, जिससे आज हम भूजल के गिरते स्तर और जल संकट का सामना कर रहे हैं।
समाज और सरकार की जिम्मेदारी के बावजूद, पानी आज बाजार के हवाले हो गया है। यदि समय रहते इस संकट का सही आकलन और समाधान नहीं किया गया, तो यह समस्या विकराल रूप धारण कर सकती है। पिछले कुछ वर्षों से, भूजल के गिरते स्तर और इसके कारण संभावित संकट पर चर्चा होती रही है। वैश्विक मंचों पर भी जल संकट की गंभीरता को लेकर चेतावनी दी जा रही है, लेकिन चिंता व्यक्त करना और समाधान निकालना दो अलग-अलग बातें हैं।
झारखंड में जल संकट की चुनौती को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि सरकार की ओर से चलाए जा रहे कार्यक्रम और योजनाएं तभी सफल हो सकती हैं जब वे स्थानीय जरूरतों और स्थितियों के आधार पर हों। उदाहरण के लिए, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती पर 25 अक्टूबर 2019 को शुरू की गई अटल भूजल योजना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, यह योजना अभी केवल सात राज्यों के कुछ गांवों तक सीमित है और झारखंड जैसे राज्यों में इसके व्यापक प्रभाव के लिए इसे और विस्तार देने की आवश्यकता है।
जल संकट का समाधान केवल सरकारी योजनाओं और नीतियों से नहीं हो सकता। इसके लिए समाज में जागरूकता और जिम्मेदारी की भावना को भी बढ़ावा देना होगा। जल संरक्षण की दिशा में सामूहिक प्रयास, स्थानीय स्तर पर पहल, और पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकों का पुनरुत्थान ही हमें इस संकट से उबार सकता है। जब तक जल संरक्षण को लेकर सजगता नहीं बढ़ती और पानी की बर्बादी पर लगाम नहीं लगाई जाती, तब तक जल संकट से निपटने का हर प्रयास अधूरा रहेगा।
झारखंड में भी जल संरक्षण की चुनौती बड़ी है। राज्य में मानसून के दौरान अच्छी वर्षा होती है, लेकिन इसका अधिकांश पानी संग्रहित नहीं हो पाता। इसका परिणाम है कि गर्मियों में राज्य के कई हिस्सों में पानी की भारी कमी हो जाती है। ऐसे में, यह आवश्यक है कि झारखंड में भी व्यापक स्तर पर जल संरक्षण और पुनर्भरण की योजनाओं को लागू किया जाए।
यदि हम समय रहते जल संरक्षण के बुनियादी पहलुओं पर ध्यान नहीं देंगे और व्यापक स्तर पर जागरूकता नहीं फैलाएंगे, तो आने वाले समय में जल संकट और भी गंभीर हो सकता है। झारखंड में जल संरक्षण की दिशा में सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा, तभी हम इस संकट से प्रभावी रूप से निपट सकते हैं।