आपराधिक छवि के प्रतिनिधि: लोकतंत्र की बुनियाद पर सवाल

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु पुष्पेश।  

हाल ही में कोलकाता में हुए अपराध ने एक बार फिर इस सच्चाई को उजागर किया है कि कानून के माध्यम से समाज को इन जघन्य अपराधों से मुक्त करना बेहद कठिन है। बलात्कार जैसी पीड़ाओं से गुजरने वाले पीड़ितों के लिए न्याय की लड़ाई तब तक अधूरी रहेगी जब तक कि इन अपराधों के पीछे की वास्तविक वजहों को पूरी तरह समझकर उनका समाधान नहीं किया जाता। जब तक इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जाते, कठोर दंड भी ऐसे अपराधों को रोकने में नाकाफी साबित होंगे।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की हालिया रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि 2019 और 2024 के बीच चुने गए 16 सांसदों और 135 विधायकों पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के गंभीर आरोप हैं। इनमें से कई पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत मामले दर्ज हैं, जिसमें 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सबसे अधिक 54 ऐसे सांसद और विधायक भारतीय जनता पार्टी से हैं, जबकि कांग्रेस के 23 और तेलुगू देशम के 17 सदस्य इसी श्रेणी में आते हैं।

यह रिपोर्ट उन प्रतिनिधियों की चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करती है, जो कानून बनाने और उसके पालन का वादा करते हैं। इन जनप्रतिनिधियों की वास्तविकता अक्सर तब उजागर होती है जब वे सदन में जनहित के प्रश्नों के बदले पैसे मांगते हैं, अश्लील सामग्री देखते हैं, या फिर सदन को अखाड़े में तब्दील कर देते हैं। बावजूद इसके, इन्हें ताउम्र वेतन, भत्ते और पेंशन का अधिकार प्राप्त है, जो आम नागरिकों के लिए गहरे खतरे का प्रतीक है।

चुनाव आयोग, सर्वोच्च न्यायालय और कानून व्यवस्था के अपने-अपने विवशताओं के कारण, इस बेलगाम प्रक्रिया पर नियंत्रण नहीं रख पाते। दोष सिद्ध होने के बावजूद, ये प्रतिनिधि अपनी सत्ता और रसूख के बल पर पीड़ितों की सहानुभूति हासिल कर महिमा मंडित हो जाते हैं।

ADR की रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि राजनीति में स्वच्छता और नैतिकता के दावे करने वाली पार्टियाँ, जैसे भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी, आपराधिक प्रवृत्तियों के चरम पर हैं। राजनीति में आपराधिक छवि के लोगों की बढ़ती पैठ, समाज और लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए गंभीर चिंता का विषय है। यह न केवल न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है, बल्कि भ्रष्टाचार को रोकने में भी बड़ी चुनौती उत्पन्न करता है।

लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि समाज की भलाई के लिए काम करेंगे, लेकिन जब वे स्वयं अपराधों में लिप्त हों, तो इस प्रणाली की नैतिकता पर गंभीर सवाल उठते हैं। राजनीतिज्ञों का लक्ष्य यदि केवल जीत सुनिश्चित करना और सत्ता हासिल करना रह जाए, तो यह न केवल लोकतंत्र के लिए खतरा है, बल्कि समाज की नींव को भी कमजोर करता है।

समाज को सतर्क रहना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे लोग सत्ता में न आएं, जिनकी पृष्ठभूमि अपराधों से दागी हो। यह समय है कि राजनीति में शुचिता और नैतिकता को प्राथमिकता दी जाए, ताकि देश का भविष्य सुरक्षित और समृद्ध हो सके।