सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) आज भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह संगठन, जिसकी स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी, भारतीय समाज के लिए न केवल सामाजिक कार्यों का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है, बल्कि यह नए भारत की नई पीढ़ी को संस्कार और नेतृत्व का मार्ग भी दिखा रहा है। नए भारत के निर्माण में संघ की प्रासंगिकता और युवाओं के बीच इसका बढ़ता आकर्षण यह प्रमाणित करता है कि यह संगठन क्यों आज के समय में पहले से कहीं अधिक आवश्यक है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना ऐसे समय में हुई थी जब भारत ब्रिटिश उपनिवेशवाद की चपेट में था और भारतीय संस्कृति पर गहरा आघात हो रहा था। डॉ. हेडगेवार ने यह महसूस किया कि भारतीय समाज को संगठित और जागरूक करना समय की सबसे बड़ी जरूरत है। उनके अनुसार, हिंदू समाज और संस्कृति की सुरक्षा ही भारत के पुनर्जागरण की कुंजी है। संघ ने इसी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए अपने लक्ष्यों को समाज में फैलाया, जिसका मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और राष्ट्र को परम वैभव तक पहुँचाना था।
संघ ने अपने शुरुआती दिनों से ही अनुशासन और सेवा का जो मॉडल प्रस्तुत किया, वह धीरे-धीरे समाज के विभिन्न क्षेत्रों में स्वीकार किया जाने लगा। संघ के स्वयंसेवक बिना किसी प्रचार के समाज में सेवा कार्यों में लीन रहे, जिससे संघ की विश्वसनीयता और शक्ति बढ़ती गई। यही अनुशासन और सेवा भावना संघ को अन्य संगठनों से अलग बनाती है और यही कारण है कि संघ का आकर्षण युवा पीढ़ी के बीच तेजी से बढ़ रहा है।
आज की युवा पीढ़ी, जो तकनीकी उन्नति, वैश्विक विचारधाराओं और बदलावों के बीच अपना स्थान ढूंढ रही है, संघ में एक सशक्त और स्थिर मार्गदर्शन देख रही है। संघ की शाखाओं में अनुशासन, आत्मनिर्भरता, और समाज सेवा की जो शिक्षा दी जाती है, वह युवाओं के लिए एक सशक्त आधार प्रदान करती है। शाखाओं में खेल, शारीरिक व्यायाम और बौद्धिक चर्चा के माध्यम से न केवल शारीरिक सुदृढ़ता का विकास होता है, बल्कि मानसिक और नैतिक बल भी मिलता है। इस प्रकार, संघ की शाखाएं एक सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थान के रूप में उभरती हैं, जहाँ युवा पीढ़ी को अपने देश, समाज और संस्कृति के प्रति जागरूक किया जाता है।
संघ का यह दृष्टिकोण युवाओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है। एक ऐसे समय में जब देश वैश्विक शक्तियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की दिशा में अग्रसर है, संघ की विचारधारा युवाओं को राष्ट्रीय गर्व और सांस्कृतिक पहचान के महत्व का बोध कराती है। युवाओं में संघ के प्रति यह आकर्षण इसलिए भी बढ़ रहा है क्योंकि संघ आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन स्थापित करता है। यह संगठन उन्हें सिखाता है कि आधुनिकता का स्वागत करते हुए भी अपनी जड़ों से जुड़े रहना कितना महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्य उद्देश्य केवल समाज सेवा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका बड़ा लक्ष्य राष्ट्र निर्माण है। संघ ने हमेशा समाज के सबसे निचले स्तर तक सेवा कार्यों का विस्तार किया है। चाहे वह आपदाओं के समय राहत कार्य हो या समाज में व्याप्त असमानता को दूर करने के प्रयास, संघ ने हमेशा बिना किसी भेदभाव के सभी वर्गों के लिए काम किया है। संघ की इस सेवा भावना को देखकर आज के युवा इसे एक आदर्श मानते हैं और समाज सेवा की भावना को आत्मसात करते हैं।
संघ का योगदान केवल समाज सेवा तक सीमित नहीं है। इसके माध्यम से सामाजिक एकता और राष्ट्रीय एकता को भी बढ़ावा दिया गया है। संघ ने जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के भेदभावों को दूर करने का प्रयास किया है और इस दिशा में बड़े पैमाने पर काम किया है। संघ की विचारधारा सभी भारतीयों को एक समान मंच पर लाने की है, जिससे समाज में विभाजन नहीं बल्कि एकता और समरसता का वातावरण बने। यह युवा पीढ़ी के लिए एक सशक्त संदेश है कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ चुका है। आज संघ के प्रेरणा से कई देशों में संगठन कार्यरत हैं और वहां भारतीय समुदाय के बीच राष्ट्रीय भावना का संचार कर रहे हैं। संघ का यह वैश्विक दृष्टिकोण नए भारत की नई पीढ़ी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह वैश्विक स्तर पर भारत को प्रतिष्ठित देखना चाहती है। संघ का यह दृष्टिकोण और उसका योगदान भारत को पुनः “विश्व गुरु” के स्थान पर स्थापित करने की दिशा में अहम भूमिका निभा सकता है।
संघ का मानना है कि जब तक भारत अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को नहीं पहचानेगा, तब तक वह वैश्विक नेतृत्व नहीं कर सकेगा। संघ की इस विचारधारा को लेकर आज की युवा पीढ़ी में एक नई जागरूकता आ रही है, क्योंकि यह विचारधारा उन्हें यह सिखाती है कि आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक गर्व ही वास्तविक प्रगति की दिशा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवा कार्य अनगिनत हैं और ये समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन, और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में संघ का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। संघ की प्रेरणा से अनेक संगठन और संस्थाएं समाज सेवा के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना है।
युवाओं के लिए संघ का यह सेवा कार्य एक आदर्श बनता जा रहा है, क्योंकि वे देख रहे हैं कि संघ न केवल राष्ट्रवाद का प्रचार करता है, बल्कि उसे व्यवहार में लाता है। संघ की शाखाओं में दी जाने वाली शिक्षा और सेवा कार्यों के प्रति समर्पण से युवाओं में देशभक्ति और समाज सेवा की भावना प्रबल होती है। वे यह समझते हैं कि केवल भाषणों और नारों से नहीं, बल्कि वास्तविक कार्यों से समाज और राष्ट्र की प्रगति हो सकती है।
आज का भारत एक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। वैश्विक ताकतें, आर्थिक प्रतिस्पर्धा और आंतरिक चुनौतियाँ भारत के विकास पथ पर प्रभाव डाल रही हैं। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा संगठन, जो न केवल भारत के अंदर बल्कि बाहर भी भारतीय संस्कृति और मूल्यों को स्थापित करने में सहायक है, बेहद प्रासंगिक हो जाता है। संघ की विचारधारा “वसुधैव कुटुंबकम्” के सिद्धांत पर आधारित है, जो विश्व को एक परिवार मानता है। यह दृष्टिकोण न केवल भारत को वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर कर सकता है, बल्कि युवाओं को यह भी सिखाता है कि सही नेतृत्व का आधार सांस्कृतिक गर्व और नैतिक मूल्य हैं।
संघ का अनुशासन, राष्ट्रवाद और सेवा के प्रति समर्पण आज की पीढ़ी को एक सशक्त मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है। यही कारण है कि संघ में युवाओं का आकर्षण लगातार बढ़ रहा है। यह संगठन उन्हें न केवल देश के प्रति जिम्मेदारी का बोध कराता है, बल्कि उन्हें नेतृत्व और सेवा के अवसर भी प्रदान करता है। संघ की शाखाओं में दी जाने वाली शिक्षा युवाओं को न केवल समाज सेवा बल्कि आत्मनिर्भरता और नेतृत्व के गुण सिखाती है, जो उन्हें भविष्य में देश के कर्णधार बनने के लिए तैयार करती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का महत्व केवल अतीत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भविष्य के भारत के निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। संघ का उद्देश्य नए भारत को उसकी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ते हुए उसे वैश्विक नेतृत्व की दिशा में अग्रसर करना है। संघ का अनुशासन, सेवा और राष्ट्रवाद की भावना युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि यह उन्हें एक सशक्त और स्थिर भविष्य की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
संघ की विचारधारा और उसकी गतिविधियाँ नए भारत की नई पीढ़ी के लिए एक प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं, जो न केवल भारत के भविष्य को दिशा दे रही हैं, बल्कि उसे एक सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की ओर अग्रसर कर रही हैं।