सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
झारखंड में विधानसभा चुनावों की काउंटडाउन शुरू हो गई है। जैसे-जैसे दशहरा नजदीक आ रहा है, चुनावी तारीखें और आदर्श आचार संहिता लागू होने का समय भी करीब आता जा रहा है। इस बार के चुनाव में भाजपा, जो कि मुख्य विपक्षी दल है, सत्ता में आने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। 2019 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले, भाजपा इस बार एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) गठबंधन के साथ चुनावी समर में उतरेगी, जिसका मतलब है कि पार्टी अब अकेले नहीं, बल्कि सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनावी रण में शामिल होने जा रही है।
भाजपा के लिए यह चुनाव महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में झारखंड में उसकी स्थिति कमजोर हुई है। इस दौरान कई चुनावों में पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। झारखंड में भाजपा की स्थिति के कमजोर होने का एक प्रमुख कारण विपक्षी दलों का एकजुट होना और उनके द्वारा जनता के बीच बेहतर संवाद स्थापित करना रहा है। एनडीए के तहत आजसू पार्टी, जदयू और लोजपा (आर) जैसे दल भी चुनाव में अपना दमखम दिखाने के लिए तैयार हैं। इन सहयोगी दलों की कोशिश है कि वे अधिकतम सीटों पर दावा कर सकें।
केंद्र में भाजपा की स्थिति भी अब पहले जैसी मजबूत नहीं है, जिससे सहयोगी दलों के साथ तालमेल बनाना एक मजबूरी बन गई है। यह भाजपा के लिए एक चुनौती है, क्योंकि सहयोगी दलों की मांगें और उनके चुनावी आधार को ध्यान में रखते हुए सीटों का बंटवारा करना होगा। यदि भाजपा इस स्थिति को सही से प्रबंधित नहीं कर पाई, तो इसका सीधा असर चुनावी परिणामों पर पड़ सकता है।
भाजपा के झारखंड चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंता विश्व सरमा की बैठक में विधानसभा चुनाव के लिए संभावित उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा हुई। भाजपा को अब यह समझना होगा कि सभी 81 सीटों पर वह अकेले नहीं लड़ने जा रही, इसलिए सीटों की डीलिंग में सावधानी बरतनी होगी। आजसू पार्टी के सुदेश कुमार महतो और जदयू के नेता भी सीटों के लिए अपनी मांगें उठाते रहे हैं, और दोनों दल अपने-अपने जनाधार के अनुसार सीटें मांग रहे हैं।
इस चुनाव में भाजपा के लिए यह जरूरी होगा कि वह अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर एक मजबूत चुनावी रणनीति तैयार करे। आजसू पार्टी और जदयू ने अपने-अपने क्षेत्रों में दावेदारी पेश की है। कोयलांचल, उत्तरी और दक्षिणी छोटानागपुर में आजसू और जदयू का मजबूत आधार है। खासकर, पलामू और कोल्हान में इन दोनों दलों को अपने-अपने क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है।
विधायक सरयू राय का जदयू में शामिल होना पार्टी के लिए एक बड़ी जीत है। इससे जदयू ने जमशेदपुर पूर्वी सहित कुछ अन्य सीटों पर भी दावा ठोकने का साहस जुटाया है। इस तरह की गतिविधियाँ दर्शाती हैं कि सहयोगी दल अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए सक्रिय हैं और भाजपा को भी यह समझना होगा कि सीटों के बंटवारे में इन दलों की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
वहीं, लोजपा (रामविलास) और जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ भी पहली बार झारखंड में चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। चिराग पासवान का झारखंड दौरा और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात इस बात का संकेत है कि लोजपा भी अपनी राजनीतिक पहचान बनाने के लिए प्रयासरत है। इस तरह की घटनाएं दर्शाती हैं कि झारखंड की राजनीतिक फलक पर नए दलों का उभार हो रहा है, जो भाजपा के लिए एक चुनौती साबित हो सकता है।
लोजपा और ‘हम’ के साथ-साथ अन्य छोटे दल भी चुनावी मैदान में हैं, जो भाजपा और उसके सहयोगी दलों को चुनौती देने के लिए तैयार हैं। इन दलों के आने से चुनावी समीकरण में परिवर्तन आ सकता है और भाजपा को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह इन नए प्रतिस्पर्धियों को मात देने के लिए उचित रणनीति तैयार करे।
झारखंड की जनता इस चुनाव में कई मुद्दों को लेकर जागरूक है। बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, विकास की कमी और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दे लोगों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। खासकर, युवा वर्ग जो रोजगार के अवसरों की तलाश में है, वह इस चुनाव में अपनी आवाज उठाने के लिए तैयार है। जनता की उम्मीदें इस बार चुनाव में काफी ऊँची हैं।
भाजपा को यह समझना होगा कि केवल चुनावी जुमले और वादों से काम नहीं चलेगा। पार्टी को जमीन पर काम करने और लोगों के मुद्दों को सुनने की आवश्यकता है। पिछले चुनावों में किए गए वादे जो अधूरे रह गए हैं, उन पर ध्यान देकर भाजपा को अपनी छवि को सुधारना होगा। चुनाव के समय स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देना और उन्हें हल करने के लिए ठोस योजनाएँ बनाना आवश्यक होगा।
इस बार का विधानसभा चुनाव झारखंड के राजनीतिक भविष्य के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। भाजपा को अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनावी रणनीतियों को सही तरीके से अपनाने की आवश्यकता है। चुनावी प्रक्रिया में भाजपा को जनता की अपेक्षाओं का ख्याल रखना होगा। यदि भाजपा अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एक मजबूत मोर्चा तैयार करती है, तो वह सत्ता में लौटने में सफल हो सकती है। लेकिन अगर वह इस चुनावी समर में अपने रणनीतिक कदमों में चूक गई, तो विपक्षी दल इसका फायदा उठा सकते हैं।
इस चुनाव में जिन प्रमुख मुद्दों को उठाया जाएगा, उनमें केवल राजनीतिक समीकरण ही नहीं, बल्कि जनता की मूलभूत आवश्यकताएँ भी शामिल होंगी। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर कितनी मजबूती से इस चुनावी चुनौती का सामना करती है और क्या वह झारखंड की सत्ता में फिर से लौटने में सफल हो पाती है।
झारखंड विधानसभा चुनाव केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक आंदोलन का हिस्सा भी है। जनता की अपेक्षाएँ, मुद्दे, और राजनीतिक दलों के बीच की प्रतिस्पर्धा इस चुनाव को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर ला खड़ा कर सकती हैं। भाजपा के लिए यह समय अपनी रणनीतियों को परखने और अपने सहयोगी दलों के साथ तालमेल बनाने का है।
भाजपा को यह समझना होगा कि अगर वह जनता के मुद्दों पर ध्यान नहीं देती, तो इसका परिणाम चुनावी हार के रूप में सामने आ सकता है। यह चुनाव झारखंड के राजनीतिक परिदृश्य को नए सिरे से आकार देने का अवसर है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों को इस चुनावी समर में अपनी क्षमता को साबित करने का मौका मिलेगा। ऐसे में चुनाव परिणाम न केवल राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेंगे, बल्कि झारखंड के विकास के पथ को भी निर्धारित करेंगे।
यह समय भाजपा और उसके सहयोगी दलों के लिए एक परीक्षा की घड़ी है। यदि वे एकजुट होकर इस चुनावी समर में अपने-अपने मतदाताओं की आकांक्षाओं को समझते हैं और उनके लिए सटीक नीतियाँ बनाते हैं, तो वे न केवल सत्ता में वापस आ सकते हैं, बल्कि झारखंड के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।