सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
झारखंड में चुनाव 13 और 20 नवम्बर 2024 को दो फेज़ में होंगे । ECI ने कल शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर इसकी विधिवत घोषणा की। झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 की तिथियों की घोषणा के साथ ही राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। हर पार्टी, चाहे वह राष्ट्रीय हो या क्षेत्रीय, अपने-अपने स्तर पर चुनावी तैयारी में जुट चुकी है। मौजूदा सरकार जहां अपने कार्यकाल की उपलब्धियों का बखान कर रही है, वहीं विपक्षी दल नए वादों और योजनाओं के साथ जनता को लुभाने की कोशिश में हैं। इस चुनावी समर में झारखंड के कई पुराने और नए चेहरे मैदान में होंगे, जो जनता के सामने अपने-अपने दावे और वादे पेश करेंगे। ऐसे में राज्य की जनता के लिए यह चुनाव एक महत्वपूर्ण अवसर है, जब वे राज्य के भविष्य का निर्धारण करने में अपनी भूमिका निभाएंगे।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो)
झारखंड की मौजूदा सरकार का नेतृत्व कर रही झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) इस बार हेमंत सोरेन के नेतृत्व में एक बार फिर सत्ता में वापसी का प्रयास करेगी। हेमंत सोरेन ने अपने कार्यकाल में आदिवासी और ग्रामीण विकास के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनका प्रचार वह चुनावी मंचों पर करेंगे। हालांकि, सरकार पर भ्रष्टाचार और अवैध भूमि कब्जे के गंभीर आरोप भी लगे हैं। यह चुनाव झामुमो के लिए एक कठिन परीक्षा साबित हो सकता है, जहां उन्हें अपने विकास कार्यों और योजनाओं को जनता के सामने मजबूती से रखना होगा। साथ ही, विपक्षी दलों द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों का मुकाबला करने के लिए एक ठोस रणनीति बनानी होगी।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
भाजपा, जो इस समय झारखंड की सत्ता से बाहर है, इस बार पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर रही है। बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में पार्टी झामुमो सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और कुशासन के मुद्दे को उठाते हुए सत्ता वापसी का प्रयास करेगी। भाजपा का चुनावी एजेंडा मुख्य रूप से राज्य में विकास और कानून व्यवस्था को लेकर होगा। मरांडी के नेतृत्व में पार्टी अपनी पुरानी पकड़ को मजबूत करते हुए नए वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित करेगी। भाजपा को इस बार यह सुनिश्चित करना होगा कि आदिवासी और ग्रामीण वोटर्स का विश्वास जीत सकें, क्योंकि यही चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
कांग्रेस
कांग्रेस, जो झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन में है, इस चुनाव में अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश करेगी। कांग्रेस का राज्य में बड़ा वोट बैंक नहीं है, लेकिन गठबंधन के माध्यम से वह सत्ता में हिस्सेदारी बनाए रखना चाहती है। कांग्रेस इस बार ज्यादा सीटों की मांग कर रही है, जो गठबंधन के भीतर तनाव का कारण बन सकती है। कांग्रेस के सामने चुनौती यह होगी कि वह अपने पारंपरिक वोट बैंक को बचाए रखे और नए मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करे। कांग्रेस का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वह गठबंधन के भीतर अपनी स्थिति को कैसे संभालती है।
आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू)
आजसू पार्टी, जो झारखंड की राजनीति में हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है, इस बार भाजपा के साथ गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर जोर दे रही है। पिछली बार आजसू को 10 सीटें मिली थीं, और इस बार भी पार्टी यह सुनिश्चित करना चाहती है कि वह अधिक सीटों पर चुनाव लड़ सके। पार्टी का वोट बैंक मुख्य रूप से कुर्मी और पिछड़ी जातियों में है, और आजसू का फोकस इन्हीं क्षेत्रों में अपने प्रभाव को बनाए रखने पर होगा। हालांकि, भाजपा के साथ सीट बंटवारे को लेकर किसी भी प्रकार की असहमति गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद)
राजद, जो झारखंड में सीमित सीटों पर ही चुनाव लड़ता है, इस बार ज्यादा सीटों की मांग कर रहा है। पार्टी की रणनीति यह है कि वह झामुमो और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर अपनी स्थिति को मजबूत करे। लालू यादव और तेजस्वी यादव की अगुवाई में राजद झारखंड में अपनी राजनीतिक उपस्थिति को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। हालांकि पार्टी को यहां ज्यादा सफलता नहीं मिली है, फिर भी कुछ क्षेत्रों में राजद का प्रभाव देखा जा सकता है। इस बार की चुनावी रणनीति में राजद को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपने पारंपरिक वोट बैंक को बचाए रखते हुए नए मतदाताओं को आकर्षित कर सके।
माले और अन्य छोटे दल
झारखंड में वामपंथी दलों और छोटे क्षेत्रीय दलों की भी चुनावी समीकरणों में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। माले का वोट बैंक खासकर बगोदर, निरसा और सिंदरी जैसे क्षेत्रों में मजबूत है। पार्टी इन इलाकों में अपने प्रभाव को बनाए रखने की कोशिश कर रही है और इस बार भी इन क्षेत्रों में कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। हालाँकि इस बार आसार हैं कि झारखंड में वामपंथी दलों को इंडी गठबंधन में समाहित कर लिया जाय। अन्य छोटे दल भी अपने-अपने क्षेत्रों में अपना दबदबा बढ़ाने के प्रयास में हैं। झारखंड की राजनीति में छोटे दलों की भूमिका कभी-कभी निर्णायक होती है, खासकर जब बड़े दलों के बीच समीकरण बंट जाते हैं।
अब इन्हें वोट कटवा टीम कहें या झारखण्ड में राजनितिक जागरूकता ; झारखंड की राजनीति में नई पार्टियों का उदय एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प बदलाव है। पिछले कुछ वर्षों में राज्य में कई नई राजनीतिक पार्टियां उभर कर सामने आई हैं, जो खासकर युवा मतदाताओं और विभिन्न सामाजिक वर्गों के मुद्दों को उठाकर अपनी जगह बना रही हैं। ये पार्टियां पारंपरिक राजनीति से हटकर नए विचार और दृष्टिकोण लेकर आई हैं, जो झारखंड की राजनीतिक धारा को बदलने की कोशिश कर रही हैं।
1. झारखंड जन मुक्ति मोर्चा (JJM)
झारखंड जन मुक्ति मोर्चा एक नई राजनीतिक पार्टी है, जो राज्य में आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों के मुद्दों को केंद्र में रखकर काम कर रही है। इस पार्टी का मुख्य फोकस आदिवासी अधिकारों, भूमि विवादों, और स्थानीय स्वशासन के मुद्दों पर है। झारखंड की पारंपरिक पार्टियों से असंतुष्ट युवाओं और ग्रामीणों का समर्थन इस पार्टी को मिल रहा है।
2. झारखंड विकास युवा मंच (JVYM)
यह एक युवा केंद्रित पार्टी है, जो राज्य के विकास और युवाओं की बेरोजगारी, शिक्षा, और रोजगार से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से उठाती है। झारखंड विकास युवा मंच का मुख्य उद्देश्य राज्य के विकास को गति देना और नई पीढ़ी को राजनीति में शामिल करना है। इस पार्टी का मानना है कि पारंपरिक दलों ने युवाओं के मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है, और यह पार्टी इस खाली जगह को भरने का दावा करती है।
3. झारखंड परिवर्तन दल (JPD)
झारखंड परिवर्तन दल राज्य के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर फोकस करता है, विशेषकर किसान, मजदूर, और पिछड़े वर्गों के विकास के लिए। इस दल का गठन उन नेताओं द्वारा किया गया है जो पारंपरिक दलों से अलग होकर एक नई राजनीतिक शुरुआत करना चाहते हैं। पार्टी का उद्देश्य राज्य में पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार स्थापित करना है।
4. झारखंड महिला शक्ति (JMS)
महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए झारखंड महिला शक्ति एक नई पार्टी के रूप में उभरी है। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य राज्य की महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाना है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा, शिक्षा में असमानता और रोजगार में भेदभाव जैसे मुद्दे इस पार्टी के एजेंडे में प्रमुखता से शामिल हैं।
5. आदिवासी जन शक्ति पार्टी (AJSP)
आदिवासी जन शक्ति पार्टी राज्य के आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा और उनके विकास को प्राथमिकता देती है। यह पार्टी आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने और आदिवासी पहचान को संरक्षित करने के लिए बनी है। पार्टी का लक्ष्य है कि झारखंड की आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करते हुए उनका समग्र विकास हो।
6. झारखंड किसान दल (JKD)
झारखंड के किसानों के मुद्दों को लेकर यह एक नई पार्टी है, जो खेती-किसानी, फसल की उचित कीमत, और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए काम कर रही है। झारखंड किसान दल ने राज्य के कई हिस्सों में किसानों के हितों की लड़ाई लड़ी है और चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है। इस पार्टी का उद्देश्य है कि राज्य में कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जाए और किसानों की आत्महत्या के मुद्दों को सुलझाया जाए।
7. जन अधिकार पार्टी (JAP)
जन अधिकार पार्टी राज्य के गरीब और हाशिए पर खड़े लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रही है। यह पार्टी सामाजिक न्याय, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए कार्यरत है। जन अधिकार पार्टी का कहना है कि झारखंड की पारंपरिक पार्टियों ने गरीबों और दलितों के मुद्दों की अनदेखी की है, और यह पार्टी इस दिशा में काम कर रही है कि राज्य के सबसे कमजोर वर्गों की आवाज़ उठाई जा सके।
8. स्वराज पार्टी (SP)
स्वराज पार्टी एक नई राजनीतिक शक्ति है, जो गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित है। पार्टी का मुख्य उद्देश्य स्थानीय स्वशासन को मजबूत करना और सत्ता को निचले स्तर पर विकेंद्रीकृत करना है। स्वराज पार्टी का एजेंडा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और गांव-गांव में स्थानीय शासन व्यवस्था को मजबूत करना है। पार्टी युवाओं और किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
झारखंड की राजनीति में नई पार्टियों का आगमन राज्य के लोकतंत्र को और अधिक समृद्ध बना रहा है। जहां राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां अपने पारंपरिक वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, वहीं ये नई पार्टियां उन मुद्दों को सामने ला रही हैं जो अब तक अनदेखी रहे थे। हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि इन पार्टियों का चुनावी प्रदर्शन कैसा रहता है, लेकिन यह स्पष्ट है कि झारखंड की राजनीति अब केवल पुराने और बड़े दलों तक सीमित नहीं रहेगी।
जनता की भूमिका
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका राज्य की जनता की होगी। मतदाताओं को इस बार सोच-समझकर निर्णय लेना होगा कि वे किसे वोट दें। अक्सर चुनावी वादों और नारों के जाल में फंसकर लोग गलत उम्मीदवार को चुन लेते हैं, और फिर अगले पांच साल तक पछताते रहते हैं। इस बार मतदाताओं को यह समझना होगा कि चुनावी वादे सिर्फ कागज पर होते हैं, और असली सवाल यह है कि कौन सा उम्मीदवार वास्तव में उनके क्षेत्र और राज्य के विकास के लिए काम करेगा।
उम्मीदवारों की टिकट की दौड़
सभी राजनीतिक दलों में टिकट पाने के लिए होड़ मची हुई है। उम्मीदवार टिकट पाने के लिए पैरवी और खर्चे का सहारा ले रहे हैं। पार्टियों के दफ्तरों में उम्मीदवारों की भीड़ लगी रहती है, और टिकट मिलने के बाद उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार में जुट जाते हैं। चुनावी प्रचार के दौरान हर उम्मीदवार यह दावा करेगा कि वही राज्य का सबसे अच्छा प्रतिनिधि हो सकता है, लेकिन चुनाव के बाद ही असली सच्चाई सामने आएगी।
अंत में, झारखंड के मतदाताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सही उम्मीदवार का चुनाव करें। राज्य का भविष्य जनता के हाथ में है, और यह चुनाव झारखंड के विकास की दिशा तय करेगा।