जब चली छोड़ कर साथ……- ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

जब सीता बनवास में प्रभु श्रीराम जी और सीता जी का मिलन हुआ तो सीता जी ने प्रभु श्रीराम से कहा कि हे स्वामी जब मेरे चलने का समय हुआ तब आप आए ? हे नाथ किस अपराध के कारण आपने मुझे त्याग दिया ? मैने तो अग्नि परीक्षा दी थी फिर भी आपको मेरी पवित्रता पर विश्वास नहीं हुआ ? आप जब बैकुंठ पधारेगें तब वहाँ भी मैं बार बार यह प्रश्न आपसे पूछूँगी। हे स्वामी ये दोनों बालक लव और कुश आपके पुत्र हैं, इन्हें मैं आपकी शरण में सौंप रही हूँ इन्हें सनाथ किजिये। ऐसा कह धरापुत्री सीता धरा ( पृथ्वी ) में प्रवेश कर गईं ।
मैं इसे आधुनिक परिपेक्ष में लिखा हूँ कि आज की यह घटना होती तो यही होता क्योंकि समाज इस प्रश्न को उठाते रहता है कि सीता ने तो अग्नि परीक्षा दी थी फिर प्रभु श्रीराम ने क्यों त्यागा? यह मेरे मन में उठे भावों की अभिव्यक्ति है जिसे मैने लिख दिया। सीता जी ने ऐसा कहा होगा इसका कोई शास्त्रीय प्रमाण नहीं है , यह मेरी कल्पना है समाज में उठे प्रश्नों के कारण।–

जब चली छोड़ कर साथ ,
हे स्वामी तब आए हो नाथ ?
मैं पूछौं केहि दोष के कारण ,
त्याग दियो मोहे नाथ ।
मैने दी थी अगिन परीक्षा ,
फिर भी नहीं विश्वास ।
हे स्वामी अब आए हो नाथ ?
जब चली छोड़ कर साथ………
जब स्वामी बैकुंठ पधारहु ,
तहुँ पूछौं मैं नाथ ।
केहि कारण मोहे त्याग दियो प्रभु ,
कर दियो मोहे अनाथ ।
हे स्वामी अब आए हो नाथ ?
जब चली छोड़ कर साथ………
लव कुश सुत दोउ नाथ तुम्हारे ,
करहू इन्हहीं सनाथ ।
धरा पुत्रि कियो धरा प्रवेशा ,
सबको करी अनाथ ।
हे स्वामी अब आए हो नाथ ?
जब चली छोड़ कर साथ…………

 

रचनाकार

  ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र