सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
झारखंड के संथाल इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठ का मामला न केवल एक सीमा सुरक्षा की समस्या है, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर एक सुनियोजित हमले का रूप ले चुका है। यह समस्या एक गहरी साजिश का हिस्सा प्रतीत होती है, जिसमें बाहरी तत्वों द्वारा न केवल जनसंख्या असंतुलन को बढ़ावा दिया जा रहा है, बल्कि राज्य की आदिवासी परंपराओं और संस्कृति को भी नष्ट किया जा रहा है। अगर इस स्थिति को नजरअंदाज किया गया तो आने वाले समय में इसका राज्य और उसके नागरिकों पर दूरगामी प्रभाव पड़ने वाला है।
यह मामला न सिर्फ राज्य सरकार की नाकामी को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे झारखंड की सरकार अपनी आंखें बंद किए बैठी है, जबकि उसके राज्य के अंदर एक व्यापक सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हो रहा है। बांग्लादेशी घुसपैठियों के माध्यम से यहां की जनसंख्या पर जिस तरह से साजिशन हमला किया जा रहा है, यह चिंताजनक है।
बांग्लादेशी घुसपैठ: राज्य की डेमोग्राफी पर हमला
जब हम संथाल इलाकों की बात करते हैं, तो यह क्षेत्र झारखंड के आदिवासी समुदायों का गढ़ है। यहां के लोग अपनी संस्कृति, भाषा और परंपराओं को बचाए रखने के लिए संघर्षरत हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। यह घुसपैठ राज्य की जनसंख्या संरचना पर एक गहरी छाप छोड़ रही है।
इस घुसपैठ के पीछे सिर्फ जनसंख्या बढ़ाने की मंशा नहीं है, बल्कि यह एक दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा प्रतीत होती है। खासकर जब देखा जाता है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को गिफ्ट डीड के जरिए ज़मीन दी जा रही है, तो यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। जब बाहरी लोग एक खास धार्मिक समुदाय से जुड़कर किसी इलाके में बसते हैं, तो उनका उद्देश्य सिर्फ भूमि का कब्जा नहीं होता, बल्कि साथ ही साथ वहां की सांस्कृतिक और धार्मिक धारा को बदलना भी होता है।
आदिवासी इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठ की यह प्रक्रिया धीरे-धीरे आदिवासी समुदाय की आबादी को कमजोर कर रही है। एक वक्त था जब आदिवासी समुदाय की जनसंख्या 44 प्रतिशत थी, लेकिन आज यह घटकर केवल 28 प्रतिशत रह गई है। इस बदलाव से साफ पता चलता है कि यहां की आबादी में गैर आदिवासी समुदायों की संख्या बढ़ रही है, और यह बदलती हुई जनसंख्या संरचना निश्चित रूप से राज्य की सांस्कृतिक पहचान को प्रभावित कर रही है।
धर्मांतरण का खेल: क्या यह एक सुनियोजित साजिश है?
धर्मांतरण की गतिविधियां संथाल इलाके में न केवल धार्मिक असंतुलन पैदा कर रही हैं, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करने की ओर एक और कदम है। आदिवासी समुदायों का धर्म परिवर्तन करना, उनके अस्तित्व और संस्कृति के खिलाफ एक ठोस हमला है। झारखंड के आदिवासी अपनी परंपराओं और अपने विश्वासों के प्रति निष्ठावान हैं, लेकिन बाहरी धार्मिक प्रभावों द्वारा उन्हें भटका कर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है।
धर्मांतरण के इस खेल में बांग्लादेशी घुसपैठियों का भी बड़ा हाथ हो सकता है, क्योंकि यह प्रक्रिया पूरी तरह से संगठित और नियंत्रित नजर आती है। यही कारण है कि जब हम देखते हैं कि संथाल इलाके में ईसाई समुदाय की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, तो यह केवल एक संयोग नहीं हो सकता। यह एक सुनियोजित प्रयास प्रतीत होता है, जो आदिवासी समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को समाप्त करने की दिशा में एक कदम और बढ़ा रहा है।
राज्य सरकार की चुप्पी: क्या इसे अनदेखा किया जा रहा है?
इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि झारखंड की सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया है। राज्य सरकार की निष्क्रियता और बांग्लादेशी घुसपैठ के मामलों पर कार्रवाई में लापरवाही, इसे लेकर कई सवाल उठाती है। जब राज्य के आदिवासी इलाकों में इस तरह के बदलाव हो रहे हैं, तो सरकार की चुप्पी क्या संकेत देती है? क्या यह चुप्पी अनजाने में हो रही है या फिर किसी राजनीतिक स्वार्थ के कारण है?
यह बेहद चिंताजनक है कि राज्य सरकार ने बांग्लादेशी घुसपैठ और धर्मांतरण की समस्या को नजरअंदाज किया है। अगर सरकार इस पर सख्त कार्रवाई करती, तो न केवल आदिवासी समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती, बल्कि राज्य के संसाधनों और सांस्कृतिक धारा को भी बचाया जा सकता था। लेकिन राज्य सरकार का मौन इस बात का प्रतीक है कि या तो वह इस मुद्दे पर कार्रवाई करने में इच्छुक नहीं है, या फिर यह कुछ और ही बड़ी साजिश का हिस्सा है, जिसे जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है।
अदालत की भूमिका: क्या यह संकट सरकारी लापरवाही का परिणाम है?
झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को बांग्लादेशी घुसपैठ की जांच के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग कमिटी गठित करने का आदेश दिया था। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से इस पर विचार करने के लिए समय लिया। इस पूरे मामले की कानूनी प्रक्रिया भी यह दिखाती है कि राज्य सरकार का इस मुद्दे को हल करने में कोई इरादा नहीं है।
उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश और सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई से यह स्पष्ट हो रहा है कि राज्य सरकार के स्तर पर इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। यह स्थिति राज्य सरकार की नाकामी को और भी उजागर करती है। राज्य सरकार की निष्क्रियता और इस मुद्दे को हल करने के लिए उसके द्वारा किए गए प्रयासों की कमी को देखते हुए, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रही है।
समाधान की दिशा: क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?
- सख्त नीति बनाना – राज्य सरकार को बांग्लादेशी घुसपैठ और धर्मांतरण के खिलाफ तुरंत सख्त नीति बनानी चाहिए। इसके तहत संथाल इलाके में घुसपैठियों की पहचान की जानी चाहिए और उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
- धर्मांतरण पर निगरानी – धर्मांतरण की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी बाहरी धार्मिक समूह आदिवासी इलाकों में धर्म परिवर्तन के लिए लोगों को प्रेरित न करे।
- आदिवासी जागरूकता – आदिवासी समुदाय को उनके अधिकारों और संस्कृति के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि वे बाहरी दबावों से बच सकें और अपने धार्मिक व सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित कर सकें।
- केंद्र सरकार का सहयोग – केंद्र सरकार को भी इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करना चाहिए और झारखंड सरकार को इस संकट से निपटने के लिए सभी आवश्यक सहायता प्रदान करनी चाहिए।
झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ और धर्मांतरण का मुद्दा न केवल राज्य की सुरक्षा के लिए एक चुनौती है, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक पहचान और आदिवासी समुदाय के अस्तित्व पर एक गहरी चोट भी है। राज्य सरकार की इस मुद्दे पर निष्क्रियता और अनदेखी, इन दोनों स्थितियों को और भी जटिल बना रही है। अगर यह संकट यूं ही जारी रहा, तो यह न केवल राज्य की वर्तमान समस्याओं को बढ़ाएगा, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम भी राज्य और उसके नागरिकों के लिए घातक हो सकते हैं। इसलिए, इस समस्या का समाधान सिर्फ एक ठोस नीति और कड़े कदमों से ही संभव है।