सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
दिसंबर 2019 में झारखंड में राजनीतिक बदलाव हुआ। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व में हेमंत सोरेन ने सत्ता संभाली। यह सरकार आदिवासी अधिकारों की रक्षा, सामाजिक कल्याण, रोजगार सृजन, और विकास को गति देने के वादों के साथ आई थी। झारखंड के इतिहास और भूगोल को देखते हुए, जनता को उम्मीद थी कि नई सरकार राज्य की समस्याओं का समाधान कर, इसे आर्थिक और सामाजिक रूप से प्रगतिशील बनाएगी।
हालांकि, लगभग चार वर्षों के कार्यकाल में सरकार की कई नीतियों और निर्णयों पर सवाल उठे। झारखंड जैसे खनिज-समृद्ध और संभावनाओं से भरपूर राज्य में, रोजगार के अवसर, औद्योगिक निवेश, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में ठहराव देखने को मिला। इसके अलावा, कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार की घटनाओं ने भी सरकार की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव डाला। इस लेख में, हेमंत सरकार के कार्यकाल में झारखंड को हुए संभावित नुकसान और उसके कारणों का विस्तार से विश्लेषण किया गया है।
1. रोजगार सृजन में कमी और निवेश का ठहराव
झारखंड का औद्योगिक और खनिज संसाधनों का क्षेत्र देशभर में विख्यात है। लेकिन हेमंत सरकार के कार्यकाल में निवेशकों की रुचि कमजोर पड़ी। पिछली सरकार द्वारा शुरू किए गए बड़े प्रोजेक्ट्स जैसे कि औद्योगिक पार्क, खनन कंपनियों का विस्तार, और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने वाली नीतियों पर विराम लग गया।
सरकार की नीतिगत अस्पष्टता और प्रशासनिक अस्थिरता ने राज्य को आर्थिक नुकसान पहुंचाया। नतीजतन, झारखंड के युवा वर्ग, जो रोजगार की तलाश में था, उसे न केवल निराशा मिली, बल्कि राज्य से बाहर पलायन करना पड़ा। बेरोजगारी की दर में वृद्धि ने ग्रामीण और शहरी इलाकों दोनों को प्रभावित किया।
2. प्रशासनिक लचरता और भ्रष्टाचार
प्रशासनिक पारदर्शिता किसी भी सरकार की कुशलता का प्रमुख संकेतक होती है। लेकिन झारखंड में खनन पट्टों के आवंटन और सरकारी परियोजनाओं में भ्रष्टाचार के आरोपों ने सरकार की छवि को धूमिल किया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद खनन घोटाले के आरोपों में घिरे, जिससे जनता में विश्वास की कमी हुई।
इसके अलावा, राज्य के विभिन्न विभागों में योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी और अव्यवस्था स्पष्ट रूप से दिखी। विकास परियोजनाओं को सही समय पर पूरा नहीं किया गया, जिससे राज्य के आधारभूत ढांचे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
3. कानून व्यवस्था की स्थिति में गिरावट
झारखंड में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध, नक्सलवाद की पुनरुत्थान की घटनाएं और सामान्य अपराधों में वृद्धि ने कानून व्यवस्था को कमजोर किया। गांवों और कस्बों में असुरक्षा की भावना बढ़ गई।
नक्सलवाद, जिसे पहले काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया था, ने एक बार फिर से सिर उठाया। सरकार का सुरक्षा बलों को मजबूत करने में असफल रहना, नक्सलियों के खिलाफ अभियानों की कमी, और ग्रामीण विकास परियोजनाओं की धीमी गति ने इस समस्या को और गहरा कर दिया।
4. खनन और औद्योगिक विकास का ठहराव
झारखंड भारत का खनिज संपदा में सबसे समृद्ध राज्य है, लेकिन इस क्षेत्र में हेमंत सरकार के कार्यकाल के दौरान कई बाधाएं देखी गईं। खनन पट्टों के आवंटन में अनियमितताएं और परियोजनाओं की धीमी गति ने न केवल राज्य के राजस्व को नुकसान पहुंचाया, बल्कि इस क्षेत्र में रोजगार सृजन के अवसर भी सीमित कर दिए।
औद्योगिक क्षेत्र में निवेशकों की कमी, नीतिगत अस्पष्टता और क्रियान्वयन में देरी ने झारखंड को औद्योगिक विकास के मामले में अन्य राज्यों की तुलना में पीछे कर दिया।
5. आदिवासी हितों की रक्षा के नाम पर विवादित निर्णय
हेमंत सरकार ने आदिवासी अधिकारों और उनकी संस्कृति की रक्षा का वादा किया था। हालांकि, भूमि अधिग्रहण और स्थानीय नीति जैसे मुद्दों पर सरकार की नीतियां विवादित रहीं।
भूमि अधिग्रहण संबंधी निर्णय, जो आदिवासी समुदायों के हितों की रक्षा के लिए थे, ने विकास परियोजनाओं को बाधित कर दिया। इससे आदिवासी समुदायों में भी असंतोष उत्पन्न हुआ, क्योंकि उनकी समस्याओं का वास्तविक समाधान नहीं हो पाया।
6. आर्थिक कुप्रबंधन और विकास योजनाओं में सुस्ती
राज्य की वित्तीय स्थिति कमजोर रही। केंद्र सरकार की योजनाओं जैसे “उज्ज्वला योजना,” “सौभाग्य योजना,” और “आयुष्मान भारत” को सही तरीके से लागू करने में सरकार विफल रही। नतीजतन, गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग इन योजनाओं के लाभ से वंचित रह गए।
सड़क निर्माण, बिजली आपूर्ति और सिंचाई परियोजनाओं जैसे बुनियादी ढांचे से जुड़े कार्य धीमी गति से आगे बढ़े। आर्थिक कुप्रबंधन ने राज्य के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
7. शिक्षा और स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार की कमी
शिक्षा और स्वास्थ्य किसी भी राज्य के सामाजिक विकास के आधार होते हैं। झारखंड में सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति जस की तस बनी रही।
गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में वृद्धि नहीं हुई। डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मियों की कमी के कारण ग्रामीण जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल सकीं। इसी प्रकार, स्कूलों में शिक्षकों और बुनियादी ढांचे की कमी बच्चों के शिक्षा स्तर को प्रभावित कर रही है।
8. नक्सलवाद की बढ़ती चुनौती
हेमंत सरकार के कार्यकाल में नक्सलवाद का फिर से उभरना राज्य की सुरक्षा और विकास के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया। नक्सलियों ने ग्रामीण इलाकों में अपना प्रभाव बढ़ा लिया है।
नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों की कमी, विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी, और सरकारी नीति में स्पष्टता की कमी ने इस समस्या को और गहरा कर दिया।
9. राजनीतिक विवाद और अस्थिरता
हेमंत सरकार पर कई विवादों ने सरकार की छवि को कमजोर किया। मुख्यमंत्री पर खनन घोटाले का आरोप और गठबंधन सरकार में आंतरिक मतभेदों ने राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ाया।
सरकार की प्रशासनिक नीतियों में स्पष्टता की कमी ने झारखंड की विकास यात्रा को प्रभावित किया। इससे जनता में सरकार के प्रति असंतोष बढ़ा।
हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल में झारखंड ने उम्मीदों के विपरीत, ठहराव और चुनौतियों का सामना किया। रोजगार, औद्योगिक निवेश, कानून व्यवस्था, और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सरकार का प्रदर्शन कमजोर रहा।
हालांकि, कुछ सामाजिक कल्याण योजनाएं लागू की गईं, लेकिन वे राज्य की बढ़ती जरूरतों के लिए पर्याप्त नहीं थीं। झारखंड जैसे खनिज और संसाधन-समृद्ध राज्य को अपनी आर्थिक और सामाजिक क्षमता का पूर्ण उपयोग करने के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण और कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है।
हेमंत सरकार के कार्यकाल ने यह संकेत दिया कि केवल वादों और इरादों से विकास संभव नहीं है। झारखंड को एक स्थिर और पारदर्शी प्रशासनिक ढांचे के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है, ताकि यह राज्य अपनी प्राकृतिक संपदा का उपयोग करते हुए देश के अग्रणी राज्यों की पंक्ति में खड़ा हो सके।