हेमंत सोरेन और भाजपा के बीच प्रतिष्ठा की जंग

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।  

झारखंड विधानसभा चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण में 38 विधानसभा सीटों पर चुनावी शोर सोमवार को थम गया। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन सभी राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। अब प्रत्याशी सिर्फ घर-घर जाकर संपर्क कर सकते हैं। जनसभाओं, रोड शो, और अन्य प्रचार गतिविधियों पर रोक लग गई है। इस चरण का मतदान 20 नवंबर को सुबह 7 बजे से शुरू होगा और अधिकांश मतदान केंद्रों पर शाम 5 बजे तक चलेगा। हालांकि, कुछ खास मतदान केंद्रों पर वोटिंग शाम 4 बजे समाप्त होगी। यह सुनिश्चित किया गया है कि निर्धारित समय तक कतार में खड़े सभी मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें।

महत्वपूर्ण सीटें और दिग्गज नेता

इस चरण में कई बड़े राजनीतिक चेहरे अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सीट पर खास नजर रहेगी, वहीं उनके भाई बसंत सोरेन और पत्नी कल्पना सोरेन का भी राजनीतिक भविष्य दांव पर है। विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो जैसे वरिष्ठ नेता भी मैदान में हैं। इनके अलावा, मौजूदा मंत्री इरफान अंसारी, दीपिका पांडेय सिंह, और बेबी देवी के साथ-साथ 11 पूर्व मंत्री भी अपनी सीटों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

झामुमो छोड़कर भाजपा में शामिल हुए लोबिन हेम्ब्रम, सीता सोरेन और लुईस मरांडी की चुनावी स्थिति भी चर्चा में है। खास बात यह है कि इस चरण में कुल 528 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिनमें 472 पुरुष, 55 महिलाएं और एक ट्रांसजेंडर प्रत्याशी शामिल हैं।

संधान पर संताल परगना

संताल परगना झारखंड के चुनावी परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस बार भी यहां की सभी सीटों पर कांटे की टक्कर है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का गृह क्षेत्र होने के कारण झामुमो के लिए यह इलाका प्रतिष्ठा का सवाल है। दूसरी ओर, भाजपा यहां अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। पिछले चुनाव में भाजपा को यहां केवल चार सीटें मिली थीं, जबकि झामुमो ने नौ सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस बार भाजपा के मजबूत प्रचार अभियान और आदिवासी वोट बैंक में सेंधमारी के प्रयास से मुकाबला रोचक हो गया है।

निर्णायक मुद्दे और समीकरण

इस चरण के चुनाव में विकास, आदिवासी अधिकार, और स्थानीय रोजगार जैसे मुद्दे प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। भाजपा ने राज्य में स्थिरता और विकास के लिए अपना एजेंडा प्रस्तुत किया है, वहीं झामुमो गठबंधन ने सरकार की उपलब्धियों को जनता के सामने रखा है। झामुमो का फोकस आदिवासी पहचान और क्षेत्रीय अस्मिता पर है, जबकि भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय नेताओं की सभाओं के जरिए एक व्यापक दृष्टिकोण पेश किया है।

जातीय समीकरण भी इस बार के चुनाव में खास भूमिका निभा रहे हैं। संताल परगना में आदिवासी और मुस्लिम वोटर निर्णायक हो सकते हैं। भाजपा और झामुमो, दोनों ही इन समुदायों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं। इसके अलावा, महिला मतदाताओं को रिझाने के लिए भी विशेष प्रयास किए गए हैं।

रोचक मुकाबले और चर्चित सीटें

झारखंड चुनाव में कई सीटें चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं। देवघर, गोड्डा, मधुपुर, और सारठ में कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। देवघर में भाजपा के नारायण दास और राजद के सुरेश पासवान के बीच सीधी टक्कर है। सारठ में भाजपा के रणधीर सिंह और झामुमो के उदय शंकर सिंह आमने-सामने हैं। वहीं, मधुपुर और गोड्डा सीटों पर भाजपा और झामुमो के बीच कांटे की टक्कर है।

पोड़ैयाहाट, बरहेट, और महगामा सीटों पर भी दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बरहेट से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां भाजपा ने उनके खिलाफ गमालियल हेम्ब्रम को उतारा है। यह सीट झामुमो की परंपरागत सीट मानी जाती है, लेकिन इस बार जीत का अंतर कम हो सकता है।

महिला और युवा प्रत्याशियों का बढ़ता प्रभाव

इस बार चुनाव में महिला और युवा प्रत्याशियों का प्रभाव बढ़ा है। कुल 55 महिला प्रत्याशी मैदान में हैं, जो अपने अपने क्षेत्र में अलग-अलग मुद्दों को लेकर संघर्ष कर रही हैं। गिरिडीह से ट्रांसजेंडर प्रत्याशी अश्विनी आंबेडकर का चुनाव लड़ना भी इस बार की खास बात है। यह बदलाव झारखंड के समाज में बढ़ती राजनीतिक जागरूकता और समावेशिता का संकेत है।

चुनावी सुरक्षा और तैयारियां

राज्य चुनाव आयोग ने मतदान को निष्पक्ष और शांतिपूर्ण बनाने के लिए व्यापक प्रबंध किए हैं। सभी मतदान केंद्रों पर पर्याप्त सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। संवेदनशील और अति-संवेदनशील मतदान केंद्रों पर विशेष नजर रखी जा रही है। साथ ही, वोटिंग प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए ईवीएम और वीवीपैट का व्यापक उपयोग किया जाएगा।

भाजपा की रणनीति और संभावनाएं

भाजपा ने झारखंड में सत्ता वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी ने स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ राष्ट्रीय नेतृत्व की छवि को भुनाने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की रैलियों ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की है। भाजपा आदिवासी इलाकों में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए विशेष रणनीति अपना रही है।

झामुमो गठबंधन की चुनौती

दूसरी ओर, झामुमो और उसके सहयोगी दलों के लिए 2019 के प्रदर्शन को दोहराना आसान नहीं होगा। झामुमो ने अपने पारंपरिक वोट बैंक को बनाए रखने और भाजपा के हमलों का जवाब देने के लिए स्थानीय मुद्दों और सरकार की योजनाओं को चुनावी प्रचार का आधार बनाया है। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो ने आदिवासी और क्षेत्रीय पहचान के मुद्दों को उठाया है।

चुनावी नतीजों पर प्रभाव

इस बार के चुनाव परिणाम झारखंड की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। भाजपा की आक्रामक रणनीति और झामुमो गठबंधन की पकड़ के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे जनादेश देती है। चुनावी समीकरण यह संकेत देते हैं कि भाजपा झारखंड में अपने प्रदर्शन को सुधार सकती है।

भाजपा की बढ़त की संभावना

झारखंड विधानसभा चुनाव का दूसरा चरण निर्णायक साबित हो सकता है। 38 सीटों पर सीधा मुकाबला भाजपा और झामुमो के बीच है। भाजपा ने राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। झामुमो को अपने पारंपरिक गढ़ों में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चूंकि झारखंड में भाजपा की मजबूत लहर है, ऐसे में यह संभव है कि इन सीधी टक्कर वाली सीटों पर एनडीए अधिकतम सीटों पर विजय प्राप्त करे।