मोदी की कूटनीति: संवाद, संयम और संकल्प का संगम

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘

भारत-पाकिस्तान संबंधों और हाल ही में संपन्न ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तीव्र प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली हैं। इन प्रतिक्रियाओं में सबसे अधिक चर्चित बयान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रहा, जिन्होंने दक्षिण एशिया में “अस्थिरता” की आशंका जताते हुए भारत को संयम बरतने की सलाह दी। ट्रंप की इस बड़बोली, अस्पष्ट और एकतरफा टिप्पणी का उत्तर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस संतुलन, स्पष्टता और दृढ़ता के साथ दिया — वह आज के सशक्त और आत्मविश्वासी भारत की कूटनीतिक परिपक्वता का सजीव उदाहरण है। मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन न केवल एक सैन्य अभियान की जानकारी थी, बल्कि भारत के बदले हुए दृष्टिकोण, आत्मविश्वास और वैश्विक मंचों पर उसके सशक्त स्वरूप का प्रमाण भी था।

आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक रुख

ऑपरेशन सिंदूर ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब आतंकवाद के मुद्दे पर केवल प्रतीक्षा, सहिष्णुता और कूटनीतिक अपीलों तक सीमित नहीं रहेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में दो टूक कहा कि यह सैन्य कार्रवाई आतंकवाद के खिलाफ भारत की सामूहिक इच्छाशक्ति और न्याय की आकांक्षा का प्रतीक थी। दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का शिकार भारत इस बार केवल पीड़ित की भूमिका में नहीं दिखा, बल्कि आवश्यक होने पर प्रतिशोध की क्षमता और साहस का प्रदर्शन भी किया।
यह स्पष्ट संदेश था कि भारत शांति का पक्षधर है — पर कमजोरी नहीं। भारत की प्राथमिकता सदैव शांति रही है, लेकिन अब यह शांति किसी भी कीमत पर नहीं खरीदी जाएगी। पाकिस्तान और उसके आतंकी नेटवर्कों को यह समझना होगा कि भारत की सहनशीलता की भी एक सीमा है।

वैश्विक मंच पर मुखर भारत

प्रधानमंत्री मोदी का यह भी स्पष्ट संदेश था कि भारत अब वैश्विक दबावों में झुकने वाला नहीं है। पाकिस्तान की परमाणु धमकियों और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसके दावों के बावजूद भारत ने निर्णायक कदम उठाकर यह दिखा दिया कि वह अपनी सुरक्षा और संप्रभुता के विषय में आत्मनिर्भर है।
मोदी ने अमेरिका समेत वैश्विक समुदाय को अप्रत्यक्ष, किंतु स्पष्ट संदेश दिया कि भारत आतंकवाद के मुद्दे पर किसी भी प्रकार की दोहरी नीति स्वीकार नहीं करेगा। अमेरिका और पश्चिमी देश दशकों से पाकिस्तान को रणनीतिक और आर्थिक सहायता देते आए हैं। अब समय आ गया है कि वे अपनी नीतियों की पुनर्समीक्षा करें। यदि सचमुच वे वैश्विक आतंकवाद उन्मूलन के पक्षधर हैं, तो उन्हें भारत की नीति का समर्थन करना होगा। भू-राजनीतिक स्वार्थों के आधार पर आतंकवादियों के सरंक्षकों को शह देना विश्व शांति के लिए घातक है।

ट्रंप की टिप्पणी का संतुलित प्रत्युत्तर

डोनाल्ड ट्रंप की टिप्पणी की बुनियाद थी कि भारत की कार्रवाई से क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने बिना किसी उत्तेजना के इसे खारिज कर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत शांति चाहता है, पर अपनी सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा। यह रणनीतिक सोच इस तथ्य पर आधारित थी कि भारत को संयमित और जिम्मेदार शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाए, जबकि पाकिस्तान और उसके समर्थक “troublemaker” के तौर पर अलग-थलग पड़ें।
मोदी ने अमेरिका पर नैतिक दबाव भी बनाया कि यदि वह आतंकवाद के विरुद्ध ईमानदार है, तो उसे भारत के संयम की दुहाई देने के बजाय पाकिस्तान की आतंकी नीति पर अंकुश लगाना चाहिए।

राष्ट्रीय एकता और आंतरिक संतुलन का आह्वान

प्रधानमंत्री मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन केवल विदेश नीति तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने देशवासियों से संयम और एकता बनाए रखने की अपील भी की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह संघर्ष पाकिस्तान की जनता के विरुद्ध नहीं है, बल्कि वहाँ की आतंकी मानसिकता और आतंकवाद पोषक व्यवस्था के विरुद्ध है। यह विवेकपूर्ण दृष्टिकोण साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने में सहायक सिद्ध होगा और यह दर्शाएगा कि भारत आंतरिक स्थिरता वाला राष्ट्र है, जहाँ बाहरी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

भारत की वैश्विक छवि और नेतृत्व

मोदी ने यह भी रेखांकित किया कि आतंकवाद के खिलाफ यह संघर्ष केवल भारत की सीमाओं का नहीं, बल्कि वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई है। भारत की यह भूमिका अब केवल सीमित क्षेत्रीय शक्ति की नहीं रही, बल्कि एक वैश्विक नेता के रूप में उभर रही है।
भारत की यह मुखरता और दृढ़ता अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह सोचने पर विवश कर रही है कि यदि सच में आतंकवाद का उन्मूलन करना है, तो भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा। अब तक जो देश पाकिस्तान की आतंक समर्थक नीतियों के चलते चुप्पी साधे रहे, उनके लिए भी अब यह आवश्यक हो गया है कि वे अपने रुख में स्पष्टता लाएँ।

जिम्मेदार, आत्मनिर्भर भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संपूर्ण प्रत्युत्तर इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार कोई राष्ट्राध्यक्ष बिना उग्र भाषा, अनावश्यक टकराव या युद्धोन्माद के वैश्विक कूटनीति में अपनी बात मजबूती से रख सकता है। ट्रंप जैसे बड़बोले और अक्सर स्वार्थसिद्धि से प्रेरित नेताओं की बयानबाज़ी के बीच मोदी की संतुलित दृढ़ता न केवल भारत के हितों की रक्षा करती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के सशक्त और जिम्मेदार नेतृत्व की छवि को भी रेखांकित करती है।
आज भारत स्पष्ट कर रहा है कि वह शांति का पक्षधर है — पर कीमत पर नहीं। आतंकवाद के विरुद्ध यह नेतृत्व अब केवल सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वैश्विक स्वरूप ले चुका है।

अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को अब इस नई हकीकत को स्वीकार करना होगा और आतंकवाद के विरुद्ध भारत के साथ मिलकर एकजुट संघर्ष करना होगा। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने यह दिखा दिया है कि वह न केवल अपने देशवासियों की रक्षा करेगा, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार है। यही आज के नए भारत की सबसे बड़ी पहचान है — एक ऐसा भारत, जो न केवल सहनशील है, बल्कि आवश्यक होने पर निर्णायक भी है।