झारखंड विधानसभा चुनाव 2024: भाजपा ने किस पर लगाया दांव – अमर बाउरी या चंपई सोरेन?

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।  

झारखंड में आगामी विधानसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज़ हो चुकी हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है, खासकर जब से राज्य में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने आदिवासी और अन्य पिछड़ी जातियों के बीच अपनी पकड़ मजबूत की है। इस परिप्रेक्ष्य में, भाजपा के लिए दो प्रमुख चेहरे उभरकर सामने आ रहे हैं – अमर बाउरी और चंपई सोरेन। दोनों ही नेता पार्टी के संभावित उम्मीदवार हो सकते हैं, और दोनों के पास अपनी-अपनी उपलब्धियाँ और राजनीतिक कद हैं।

अमर बाउरी भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख दलित नेता हैं, जिनकी छवि न केवल उनके समुदाय में बल्कि राज्य भर में भी प्रभावशाली मानी जाती है। वे झारखंड सरकार में पिछली रघुवर दास सरकार के दौरान मंत्री रह चुके हैं और दलित वर्ग के बीच एक सशक्त नेता के रूप में उभरे हैं। उनकी राजनीतिक उपलब्धियाँ और जनता के बीच उनकी छवि भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन हो सकती हैं। अमर बाउरी दलित वर्ग के बीच लोकप्रिय हैं और उन्हें एक सशक्त और जमीनी नेता के रूप में पहचाना जाता है। भाजपा ने उन्हें राज्य में दलित समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए आगे रखा है। पिछली भाजपा सरकार में मंत्री रहते हुए, बाउरी ने कई विकास योजनाओं और परियोजनाओं पर काम किया, खासकर दलित और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए। उनकी कार्यशैली और सरल स्वभाव ने उन्हें जनता के बीच एक भरोसेमंद नेता के रूप में स्थापित किया है। ऊपर से बाउरी का प्रशासनिक अनुभव और उनकी सरकार के साथ लंबे समय तक जुड़ाव उन्हें एक मजबूत दावेदार बनाता है।

अमर बाउरी का दलित समुदाय में गहरा प्रभाव है, और अगर भाजपा इस समुदाय के समर्थन को अधिकतम करना चाहती है, तो बाउरी का नेतृत्व चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उनकी सामाजिक पकड़ और अनुभवी नेतृत्व भाजपा के लिए एक सकारात्मक पहलू हो सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां दलित वोट बैंक निर्णायक हो सकता है।

दूसरी ओर, चंपई सोरेन, आदिवासी नेता और वर्तमान में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के प्रमुख चेहरे रहे हैं, जो झारखंड की राजनीति में अपनी विशेष पहचान रखते हैं। हाल ही में, भाजपा ने उन्हें अपने खेमे में शामिल करने की कवायद शुरू की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भाजपा आदिवासी वोट बैंक पर भी नज़र रख रही है। ऊपर से चम्पई सोरेन की अपनी भी कोई बड़ी महत्वकांक्षा रही ही होगी।

चूँकि चंपई सोरेन, झारखंड के आदिवासी समुदाय के बीच अत्यधिक सम्मानित और लोकप्रिय नेता हैं। उन्होंने अपने लंबे राजनीतिक करियर के दौरान आदिवासी हितों के लिए कई मुद्दे उठाए हैं और उनकी आवाज़ बने हैं। चंपई सोरेन का राजनीतिक सफर झारखंड मुक्ति मोर्चा से शुरू हुआ और उन्होंने इस पार्टी के माध्यम से आदिवासी हितों को आगे बढ़ाया। उनके पास राज्य के आदिवासी इलाकों में मजबूत पकड़ है, जो भाजपा के लिए निर्णायक हो सकती है। चंपई सोरेन ने आदिवासी संस्कृति, जल-जंगल-जमीन और परंपराओं को संरक्षित करने पर जोर दिया है। यह आदिवासी समुदाय में उन्हें एक प्रतिष्ठित और सम्मानित नेता बनाता है।

चंपई सोरेन का भाजपा में आना पार्टी के लिए आदिवासी वोट बैंक को साधने की एक महत्वपूर्ण रणनीति हो सकती है। चंपई सोरेन की आदिवासी समुदाय में लोकप्रियता और उनकी जमीनी पकड़ भाजपा को उन क्षेत्रों में मदद कर सकती है जहां आदिवासी वोट महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा उन्हें पार्टी में कैसे शामिल करती है और उन्हें चुनाव में किस भूमिका में प्रस्तुत करती है।

भाजपा के लिए अमर बाउरी और चंपई सोरेन, दोनों ही चुनावी समीकरण में महत्वपूर्ण हैं। भाजपा के पास पहले से ही एक मजबूत दलित नेता के रूप में अमर बाउरी का समर्थन है। अगर भाजपा दलित वोट बैंक को पूरी तरह से साधना चाहती है, तो अमर बाउरी का नेतृत्व और अनुभव पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। वहीं चंपई सोरेन का भाजपा में शामिल होना आदिवासी वोट बैंक के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम होगा। भाजपा के लिए आदिवासी इलाकों में अपनी पैठ बढ़ाने का यह एक सुनहरा मौका है। हालांकि, यह देखना होगा कि पार्टी उन्हें कितनी प्रभावी भूमिका देती है और वे झामुमो के खिलाफ कितना समर्थन जुटा सकते हैं।

भाजपा की रणनीति इन दोनों नेताओं को अपने पक्ष में रखते हुए राज्य के विभिन्न समुदायों को साधने की हो सकती है। अमर बाउरी के माध्यम से दलित वर्ग और चंपई सोरेन के जरिए आदिवासी वर्ग को साधना भाजपा के लिए एक संतुलित रणनीति साबित हो सकती है, जो पार्टी को झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में मजबूत दावेदार बना सकती है।

कहने को तो झारखण्ड भाजपा ने घोषणा कर दी है कि वह इस चुनाव में किसी विशेष चेहरे पर नहीं बल्कि सामूहिकता के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी ; किन्तु क्या झारखण्ड की जनता इसे यथावत स्वीकार कर लेगी ? या उसके मन में कोई नेता विशेष ही मुख्यमंत्री का चेहरा होगा ? तो वस्तुतः यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इन दोनों प्रभावशाली नेताओं में से किसे चुनाव में प्रमुख भूमिका देती है।